ब्यूरो-ऐ के चतुर्वेदी
अम्बेडकरनगर। लाॅकडाउन के दौरान सरकार द्वारा गरीबों के लिए संचालित खाद्यान्न वितरण प्रणाली में कोटेदारों पर अनियमितता के आरोेप आमबात हो गये हैं और जांच मे अधिकारी भी इन्ही को दोषी ठहराते हुये एफआईआर जैसी कार्यवाही कर रहे है किन्तु इसके पीछे किन-किन की भूमिका है, इस दिशा में कोई जिम्मेदार जाने की जहमत नहीं उठा रहा है। जब कि इस काली करतूत से सरकार की साख पर बट्टा लग रहा है।
ज्ञात हो कि केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में शुमार सार्वजनिक वितरण प्रणाली है जिसका मुख्य उद्देश्य गरीब तबके के लोगों को सस्ते दर पर राशन मुहैय्या हो ताकि उन्हे दोनो मीटिंग भर पेट भोजन मिले। इधर कोरोना जैसे महामारी को देखते हुये सभी प्रदेशों को लाॅकडाउन कर दिया गया है जिससे आमजन के रोजी रोजगार प्रभावित है। इस कारण लोगों को भोजन की समस्या सेे रूबरू होने की स्थित आ गयी।
इस महामारी में कोई भूखा न रहे, अप्रैल माह में सरकार द्वारा निर्णय लिया गया कि गरीबों को पहले से चली आ रही योजना के साथ विशेष में प्रधानमंत्री अन्न योजना में लोगों को तीन बार खाद्यान्न व अन्य सामाग्री वितरण करायी जाय। प्रशासनिक स्तर पर इस योजना के क्रियान्वयन के लिए खाका तैयार किया गया और गोदामों से खाद्यान्न का उठान कराकर कोटेदारों के माध्यम से वितरण की प्रक्रिया शुरू हुई किन्तु इसमें राशन कार्ड धारकों तथा गरीबों के आरोप लगने लगे।
अब तक देखा जाय तो जिले में ऐसी शिकायतों पर दर्जन भर से अधिक कोटेदारों के खिलाफ निलम्बन व एफआईआर की कार्यवाही हो चुकी है लेकिन जिन अधिकारियों ने जांच किया, उनमें किसी ने यह जानने की जहमत नहीं उठाया कि आखिर घटतौली के मामले क्यों आ रहे हैं? इसमें कौन-कौन जिम्मेदार है, इस पर रिपोर्ट में जांच अधिकारियों में किसी ने नहीं दर्शाया है।
सूत्रों की मानें तो इसमें सभी तहसीलों में स्थित गोदामों पर कुछ को छोड़कर अधिकांश पर तैनात प्रभारियोें द्वारा बगैर तौल के कोटेदारों को खाद्यान्न की उठान कराये जाने की परम्परा चली आ रही है। इसके अलावा कोटेदारों से तहसीलों के पूर्ति निरीक्षकों का खाद्यान्न में प्रति कुतंल 50 रूपये व अन्य सामाग्रियों में भी लेने से नहीं चूक रहे है। यदि किसी कोटेदार ने इनकी मंशानुरूप कार्य नहीं किया तो समझिये उसकी सामत आ गयी है, ग्रामीणों के मौखिक सूचना पर भी पूर्ति निरीक्षक जांच में जुट जाया करते है। मंशा में कामयाब होने तक इंतजार करते है और असफल होेने पर कार्यवाही तय हो जाती है।
नजीर के तौर पर लिया जाय तो दो दिन पहले अकबरपुर नगर के शहजादपुर स्थित कोटेदार गीता देवी द्वारा राशन वितरण के समय सभासद के विरोध पर कुछ मीडिया कर्मी पहुॅचे। सवाल पर कोटेदार ने साफ कहा है कि हमंे गोदाम से ही कम मात्रा में राशन मिला है जिस पर शहजादपुर पुलिस चैकी के इंचार्ज ने भी कहा कि मैं कोटेदारों के बारे में जानता हूॅ किसी को भी निर्धारित वजन में खाद्यान्न नहीं मिलता तो वितरण में कितनी पारदर्शिता होगी, सहज अन्दाजा लगाया जा सकता है।
सूत्र बताते है कि पूर्ति निरीक्षकों द्वारा अवैध वसूली की रकम में जिला आपूर्ति अधिकारी, तहसीलों के एसडीएम व वितरण की पारदर्शिता में परिवेक्षक समेत जो भी है, इनके सभी के कुछ न कुछ हिस्सा तय हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब सार्वजनिक वितरण प्रणाली की पारदर्शिता में शामिल अधिकारियों के अवैध कमाई की रकम महीने में बधी है तो कैसे कोटेदार राशन कार्ड धारकों को निर्धारित खाद्यान्न मुहैय्या करा पायेगा।
इस काली करतूत में शामिल अधिकारी लाॅकडाउन में भी अपनी मंशा में कामयाब होकर सरकार की छबि धूमिल कर रहे है। इसे लेकर पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष स्वामीनाथ यादव व भारतीय नागरिक कल्याण समिति के अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री उ.प्र. शासन को गंभीरता से लेकर गरीबों के हक पर बंदरबाट की उच्च स्तरीय टीम गठित कराकर जांच कराये जाने की मांग किया है।