नई दिल्ली : वैश्विक महामारी मे अधिवक्ता वर्ग कि स्थिति का विश्लेषण

संदीप मिश्रा (अधिवक्ता) सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली।
गौरव जायसवाल (अधिवक्ता) उच्च न्यायालय, नई दिल्ली।

आज समस्त विश्व कोरोना नामक महामारी के चंगुल मे फंसकर कराह रहा है। अमीर हो या गरीब , विश्व की सभी वर्ग के ऊपर इस आर्थिक संकट का प्रभाव पड़ रहा है जिसकी वजह से भविष्य मे और भी विकराल रूप धारण कर सकता है। सबसे ज्यादा मार जिस तबके पर पड़ा है वह है गरीबी और मध्यम रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले लोग। दोनों समुदाय रोज कमाने और खाने पर निर्भर थे। परन्तु आज हम विश्लेषण करेंगे कि कैसे एक अधिवक्ता जो माध्यम अथवा निम्न वर्ग से रिश्ता रखता है यह कैसे अपना जीवनयापन कर पा रहा है?

अधिवक्ता समुदाय सबसे पढ़े- लिखे वर्ग मे आते है, परन्तु निचले स्तर पर उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय प्रतीत होती है। भारत मे अधिवक्ता तहसील स्तर से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक कानूनी कार्यो को सम्पादित करते है तथा भारत कि कानूनी व्यवस्था को सुचारु रूप से चलने मे अपना सर्वाधिक श्रम देते है , परन्तु सरकार एवं सर्वोच्च न्यायलय द्वारा उनके प्रति उदाशीन रवैया दिखाना स बात का द्योतक है कि सरकारी योजनाओ मे उनका कोई स्थान नहीं है। क्या इसके लिए अधिवक्ता स्वयं जिम्मेदार है?
भारत के अधिवक्ता के पास बुनयादी सुविधा का आभाव होने के कारण वह कंप्यूटर के माध्यम को अपनाने मे आज भी झिझकते है। भारतवर्ष मे अधिकांश ऐसे अधिवक्ता कार्य करते है जिन्हे कंप्यूटर का उपयोग करने मे आज भी परेशानी मह्सूस होती है इसके पीछे के के कई कारण हो सकते है जिनका विश्लेषण किया जा सकता है परन्तु इस समय कैसे वो जीवनयापन करे यह एक ज्वलनत समस्या है !

(फाइल फोटो : अधिवक्ता उच्च न्यायालय गौरव जायसवाल)

देखा जाये तो सरकारी स्तर पर कोई भी योजना अधिवक्ता वर्ग के लिए अभी दिखाई नहीं पड़ती है , इसके पीछे शायद यह एक मतिभ्र्रम हो सकता है कि यह वर्ग अतिसंपन वर्ग के अंतर्गत आता है किन्तु जमीनी स्तर पर यह बिलकुल उल्टा दिखाई पड़ता है। कैसे एक अधिवक्ता जिसने कुछ समय पहले ही इस व्यवस्याय मे कदम रखा है आज जीवन कैसे जी रहा होगा यह सोच कर ही दिल दहल जाता है।
कुछ प्रदेश की बार कौंसिल द्वारा कुछ सरहानीय प्रयास किये जा रहे है, परन्तु यह समेत वर्ग के लिए लाभकारी होगा, यह कहना अभी कठिन होगा। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य द्वारा अभी तक कोई कदम न उठया जाना वहा के अधिवक्ता वर्ग के प्रति एक उदासीन रवैया रखने जैसा है, जो शायद यह सिद्ध करता है सरकारों के लिए वही लोग आवश्यक होते जिनके द्वारा उन्हें वोट मिलने मे सहायक हो और वह इस चीज को मीडिया के द्वारा दिखा सके की उन्होंने कितना महान कार्य किया है।
यह आर्थिक संकट निकट भविष्य मे अगर सबसे ज्यादा जिन वर्गों को प्राभवित करेगा उसमे से एक वर्ग अधिवक्ता का अवश्य होगा। अतः अभी भी केंद्र सरकार, राज्य सरकार, एवं सर्वोच्च न्यायालय को एक साथ मंथन करके कुछ ऐसी योजना को लाना होगा जिससे इस संकट कालीन दौर मे अधिवक्ता वर्ग को बाहर निकला जाये, अन्यथा यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अधिवक्ता कोरोना नामक महामारी से बाद मे मरेगा पहले वह भुखमरी से अवश्य मर जायेगा।