भारत में आरक्षण शब्द राजनीतिक मुद्दों के कारण नेगेटिव सोच के रूप में बदल गया है।–प्रवीण कुमार निषाद सांसद संत कबीर नगर,

भारत में आरक्षण शब्द राजनीतिक मुद्दों के कारण नेगेटिव सोच के रूप में बदल गया है।–प्रवीण कुमार निषाद सांसद संत कबीर नगर,

रिपोर्ट–अमित कुमार,

दिल्ली संसद भवन संसद में मछुआ समाज आरक्षण का पक्ष रखने पर सांसद प्रवीण निषाद को आमंत्रित किया।आज दिनांक 14 मार्च दिन शनिवार को सांसद ई.प्रवीण कुमार निषाद बयान समविधान में सामाजिक पिछड़ापन अर्थात वह शोषित वर्ग या जातियां जो हजारों वर्षों से शोषण का शिकार रही है उन्हें यह प्रतिनिधित्व दिया गया है। भारत में आरक्षण शब्द राजनीतिक मुद्दों के कारण नेगेटिव सोच के रूप में बदल गया है। संविधान में समता, ममता, स्वतंत्रता, न्याय एवं बंधुत्व की स्थापना करने का प्रावधान है। लेकिन इसमें आज भी कुछ अपवाद है। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में निषाद समुदाय मछुआ समुदाय की आर्थिक स्थिति सामाजिक स्थिति एवं राजनैतिक स्थिति समाज के उस निचले पायदान पर पहुंच चुकी है जिसको हम बयां नहीं कर सकते आज यह समाज निरंतर संघर्ष कर रहा है। समाज की मांग को सदन में रखते हुए जातीय जनगणना 1961 का जिक्र करते हुए सेंसस मैनुअल पार्ट फर्स्ट फ़ॉर उत्तर प्रदेश अपेंडिक्स एफ कि जो 66 जातियों का समूह बना था जिन को अनुसूचित जाति का लाभ दिया जाना था और वर्तमान समय में उसी सूची में क्रमांक के 11 पर वाल्मीकि की उप जातियों को क्रमांक 24 पर जाटव, चमार, झूसिया की उप जातियों को , 27 नंबर पर धनगर , 30 नंबर पर धोबी, 57 पर पासी को अनुसूचीत जाति का प्रमाणपत्र दिया जाता है लेकिन उसी सूची में 51 नंबर पर मझवार की उपजातियां माझी, मुजाबिर, मल्लाह, केवट, राजगौंड, 64 नंबर पर तरैहा भी अंकित है।लेकिन राष्ट्रपति की राजआज्ञा के बाद भी आज तक इन जातियों को अनुसूचित जाति का लाभ एवं प्रमाण पत्र नहीं मिल रहा।सामाजिक न्याय और अधिकारीता विभाग का अधिदेश, विज़न और मिशन यह है की समाज में आर्थिक रूप से कमजोर, सामाजिक रूप से कमजोर, राजनीतिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान समविधान में दिया गया है। सभी वर्गों एवं सभी जातियों के विकास एवं भागीदारी हो इस सरकार का यही अभिप्राय है।