‘लेट द बर्ड फ्लाई’ वेबिनार मे अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी ने युवा खिलाड़ियों से साझा किया अनुभव
सवालों के जवाब मे छिपा है बैडमिंटन के चैंपियन की सफलता मंत्र
अमेठी(शीतला प्रसाद मिश्र)। उत्तर प्रदेश सरकार की पूर्व मंत्री, अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन खिलाड़ी व राष्ट्रीय बैडमिंटन चैंपियन तथा दिल्ली कैपिटल बैडमिंटन एसोसिएशन (डीसीबीए) की अध्यक्ष डॉ0 अमीता सिंह की मेजबानी मे रविवार की शाम 6 बजे दिल्ली से एक वेबिनार ‘लेट द बर्ड फ्लाई’ का आयोजन किया गया।
जिसमे डॉ0 अमीता सिंह ने बैडमिंटन खेल प्रेमियों से अपने अनुभव साझा किये। जिसे दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया। बताते चलें की अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय बैडमिंटन खेल मे विशेष स्थान बना चुकी पूर्व चैंपियन डॉ0 अमीता सिंह ने वेबिनार के अंत मे प्रतिभागियों के सीधे सवालों का जवाब भी दिया। वेबिनार में एक प्रतिभागी ने जब पूंछा कि, ‘क्या आप बता सकती हैं कि वह क्या है जो आपको खेल मे वापस लेकर आया, और आप अपने को एक खिलाड़ी या प्रशासक के रूप मे कैसे देखती हैं? जवाब देते हुए अमीता सिंह ने कहा, ‘ईमानदारी से कहूँ तो मैंने दिल से खेल को कभी नहीं छोड़ा। मुझे लगता है कि एक खिलाड़ी हमेशा एक खिलाड़ी होता है। खेल की भावना खिलाड़ी की जीवन शैली बन जाती है। हो सकता है कि आप शारीरिक रूप से खेल ना खेल रहे हों लेकिन आपका व्यवहार, दृष्टिकोण, कार्य और ऊर्जा हमेशा एक खिलाड़ी की तरह ही रहता है। मै स्वीकार करती हूँ कि एक ऐसी घटना हुई जिसने मुझे यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया। कुछ समय पहले कुछ अभिभावकों ने मुझे संपर्क किया, और बताया कि कुछ तकनीकी कारणों से उनके बच्चे नार्थ जोन चैंपियनशिप में भाग लेने मे असमर्थ रहे। यह महसूस करते हुए कि, खिलाड़ी चाहे जो भी हो हमेशा स्टाक प्राथमिकता होनी चाहिए मै भारत के बैडमिंटन संघ के अध्यक्ष के पास पहुंची उन्होने हस्तक्षेप किया और उनकी भागीदारी को संभव बनाया। बच्चों ने नार्थ जोन मे भाग लिया और लारेल्स जीतकर भी आए। मुझे लगता है कि इस घटना को उस प्रेरणा के रूप मे देखा जा सकता है जिसने मुझे वापस आने और बैडमिंटन कि दुनिया मे सक्रिय रूप से आने के लिए प्रेरित किया। आपके सवाल के दूसरे भाग को देखें तो मेरे लगभग 18 साल तक सक्रिय बैडमिंटन खेलने के बाद, मै समझती हूँ कि मै एक अनोखी स्थिति मे हूँ जहां मै जान सकती हूँ कि खिलाड़ियों को प्रशासकों से क्या उम्मीद होती है ताकि मैं उनके जैसी स्थिति मे सोच सकूँ।
एक दूसरे सवाल ‘एक एथिलीट कि तरह आप ने भी खेल और एकेडेमिक्स मे संतुलन बनाने के लिए समस्याओं का सामना किया होगा, आपके हिंसाब से कौन से काम सरकार/ संघ को करने चाहिए जिससे किसी खिलाड़ी को एथिलिटिक कैरियर की आवश्यकता और एकेडेमिक्स की जरूरत के बीच मे संतुलन बनाने मे सुविधा मिल सके? का उत्तर देते हुए डॉ0 अमीता सिंह न्रे कहा, जितना कि मै बचपन में नहीं समझी थी कि शिक्षा जरूरी है, आज मै कहूँगी कि जीवन की यात्रा मे एक व्यक्ति को परीक्षणों और चुनौतियों का सामना करने और तैयार करने के लिए अच्छी शिक्षा महत्वपूर्ण घटक है। एक सामान्य छात्र और खिलाड़ी के सामने आने वाली चुनौतियों मे बहुत बड़ा अंतर होता है। एक पेशेवर एथिलीट को प्रतिदिन कम से कम 6 से 8 घंटे ट्रेनिंग प्रैक्टिस करनी होती है। फिर उनसे यह अपेक्षा कि वह नियमित एकेडेमिक्स में सामान्य छात्रों कि तरह उसी शक्ति से भाग लें काफी चुनौतीपूर्ण है। मै समझती हूँ कि अच्छे एथिलीट्स के लिए विशेष पाठ्यक्रम वाले विश्वविद्यालय होने से उनके लिए अधिक लाभकारी होगा जो कि एथिलीट्स के ट्रेनिंग की जरूरतों को ध्यान मे रखते हुए काम करें। मुझे आज भी वह समय याद है जब मै कई खेलों के अंतिम तैयारियों के लिए महीनो से ट्रेनिंग कैंप मे थी तब मुझे वापस आने के लिए बाध्य किया गया और कहा गया कि आकर बाकी सहपाठियों के साथ परीक्षा दीजिए। आज मुझे वे स्कूल के साथी याद हैं जिन्होंने मुझे नोट्स और लेक्चर के बारे मे जानकारी देने मे मदद किया था। उनमें से बहुतों ने मेरे लिए यहाँ तक कि नोट्स लिख कर भी पढ़ने के लिए दिए। अगर बाम्बे स्काटिश स्कूल से कोई मित्र सुन रहा हो तो मै धन्यवाद देती हूँ। इसलिए मै समझती हूँ कि खेल विश्वविद्यालय युवा खिलाड़ियों के लिए काफी मददगार होंगे और उन्हें एथिलिटिक कैरियर तथा एकेडेमिक्स मे संतुलन बनाने मे सर्वोत्तम तरीके से सहायक होंगे। जब खिलाड़ी, पढ़ाई और प्रशिक्षण साथ करता है तब ना केवल खिलाड़ी के लिए बल्कि शिक्षकों और प्रशिक्षकों के लिए एक संरचित सामंजस्य कि भावना होती है। हालांकि कुछ खेल (स्पोर्ट्स) विश्वविद्यालय पहले से ही हैं, अब हाई-टेक विश्वविद्यालयों की जरूरत है जो सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को बनाने की जरूरत पूरी कर सकें। अगर हम में पोडियम फिनिश हासिल करने कि इच्छा है तो कुछ विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है।एक और सवाल मे एक प्रतिभागी ने पूंछा कि, ‘इस इन्फ्रास्ट्रक्चर, एकेडमी, और उपलब्ध संसाधन के साथ, आप डीसीबीए के अध्यक्ष के रूप मे कौन से कदम उठाएंगी जिससे दिल्ली टाप खिलाड़ी दे सके?’
डॉ0 अमीता सिंह ने जवाब देते हुए कहा, ‘हम भूल नहीं सकते कि दिल्ली 1982 के एशियन खेलों और 2010 के कामन वेल्थ खेलों की और तब से कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय बैडमिंटन खेलों की मेजबानी का गौरव रखती है। वास्तविकता है कि आज हम कुछ पिछड़ रहे हैं। आज के समय दिल्ली से अंतर्राष्ट्रीय पदक लाने वाले को तैयार करने मे कुछ चीजें (लिंक) छूट (मिस हो) रही हैं। मुझे लगता है कि दिल्ली के सभी अकादमियों से होनहार खिलाड़ियों को चयनित किये जाने की जरूरत है जो हो रहा है, और उन्हें एक अकादमी मे रख कर उनके खेल कैरियर की जरूरतों को पूरी तरह से पूरा किया जाएगा। उस सेंटर में सर्वोत्तम खेल और ट्रेनिंग उपकरण, सर्वोत्तम कोच, नई तकनीक, सबसे अच्छे स्पोर्ट्स डाक्टर, पोषण प्रशिक्षक, मसाज विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक के साथ सभी सुविधाएं इस प्रकार से होनी चाहिए जिससे कि खिलाड़ियों को उच्चतम खेल संभावनाओं को प्राप्त करने मे मदद मिल सके। मै सरकारी सहायता और सीएसआर अंशदान प्राप्त करने का प्रयास करूंगी, जिससे ऐसी स्पोर्ट्स एकेडेमी तैयार की जा सके जहां दिल्ली के आकांक्षी युवा खिलाड़ियों को सुविधा देकर तैयार किया जा सके।‘ एक आखिरी सवाल मे पूंछा गया कि, ‘आप अपने खेल दिनों के एक सबसे यादगार पल को दर्शकों को बताइए?’ तो जवाब देते हुए पूर्व बैडमिंटन चैंपियन डॉ0 अमीता सिंह ने कहा, ‘मै दो यादगार पल आप सभी को बताती हूँ। मुझे वह समय याद है जब महाराष्ट्र टीम गुजरात के आनंद मे राष्ट्रीय चैम्पियनशिप खेलने की तैयारी कर रही थी। मै 13 साल की थी और जूनियर चैम्पियनशिप मे जाने की तैयारी कर रही थी। जब मै टीम में चयनित नहीं हुई तब मुझे लगा कि पूरी दुनिया खत्म हो गई है और मै कभी नहीं खेल पाऊँगी। मैं उस समय पीछे छूट गई थी जब महाराष्ट्र टीम ने आनंद नेशनल में खेला। मुझे वापस ट्रेनिंग मे जाना था। लेकिन मेरे सामने वह अचंभित करने वाला खुशी का पल आया और उसी साल जूनियर नेशनल को मेन नेशनल से अलग कर दिया गया और उप-जूनियर तथा जूनियर नेशनल चैंपियनशिप कलकत्ता में हुई। मैंने कलकत्ता उप-जूनियर नेशनल खेला और जीता, यही मेरे खेल कैरियर का महत्वपूर्ण मोड़ बना। मै पहली उप-जूनियर नेशनल चैंपियन बनी और उसी के साथ एक साथ तीन राष्ट्रीय जूनियर नेशनल चैंपियनशिप बनी। दूसरी यादगार थोड़ी दुलार भरी है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय चैंपियनशिप की तैयारी के लिए ट्रेनिंग कैंप मे लंबा समय बिताना पड़ता था। हम लोग 8 लड़कियां, 10 लड़कियां, कई बार 15 भी, पटियाला के नेशनल इंस्टीट्यूट में बड़े कमरे शेयर करते थे। खेल के मैदान में कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद हम में प्रेम मे कभी कमी नहीं रही। जब हम कैंम्प मे साथ रहते थे वह समय हमारे लिए बड़ा यादगार रहा जिसे मै कभी भूल नहीं सकी। वहाँ सभी का स्वभाव बहुत अच्छा रहता था, सारा समय दोस्तों के साथ हंसी और खुशी से भरा हुआ बीतता था। मै वस्तुतः अपने टीम के साथियों के साथ बड़ी हुई। अमी, कवल ठाकुर सिंह, मधुमिता विष्ठ, राधिका बोश, मौरीन मत्थायस और हमारे कोच दमयंती ताम्बे, आपको सलाम, आज जो कुछ भी हूँ उसमे आपका बड़ा योगदान है। मुझे बैडमिंटन से मिले कई खूबसूरत सालों मे से यह दो छोटे यादगार वाकये थे। अब जब खेल में वापसी की है तो इस पीढ़ी के खिलाड़ियों के लिए खेल की भावना और अपने अनुभव से अधिक से अधिक करने को संकल्पबद्ध हूँ।