जौनपुर : लॉकडाउन : हम मजदूर हैं…मगर इस मजबूरी का दर्द अब नहीं सहा जाता
लॉक डाउन में फंसे मजदूर पैदल गांव जाने को मजबूर
विशेष संवाददाता : देवेश मिश्रा
अब शहर ना बाबा ना..
सिंगरामऊ/जौनपुर। कोरोना संकट के बीच सबसे ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है तो वो हैं मजदूरों और प्रवासी श्रमिकों को। अच्छी जिंदगी और पेट पालने की तलाश में अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर निकले इन मजदूरों ने कभी नहीं सोचा होगा कि वक्त इतनी बेरहम होकर इम्तहान की सारी हदें पार कर देगी।
मुंबई से गुरुवार को ट्रक द्वारा करन्जाकला के लिए निकला परिवार सोमवार को अमर उजाला से आप बीती बताते हुए रो पड़ा। परिवार बताया कि हम लोग कोरोना महामारी के कारण सरकार द्वारा घोषित लाकडाउन की वजह से मुम्बई के कल्याण स्थित किराये की चाल में रहते थे। परिवार के मुखिया राजेन्द्र कुमार ने बताया कि लॉक डाउन में अगर अब घर न आते तो मर जाते हम दिहाड़ी मजदूर है जब हमारे पास खाने पीने के लिए कुछ पैसे नहीं बचे तो मेरी पत्नी ने अपने जेवर बेच कर भाड़ा का प्रबंध किया। हम लोग वहां से एक एजेन्ट के माध्यम से ट्रक द्वारा जौनपुर तक पहुचाने की बात तय हुई भाड़ा चार हजार रुपया प्रति व्यक्ति लिया गया। और गुरुवार को चार दिन पहले रवाना हो गए, रास्ते में पता चला कि ट्रक भाड़ा तीन हजार है, एक हजार रुपया एजेंट लिया । रास्ते भर तमाम झन्झावात झेलते हुए रविवार की रात किसी तरह हम लोग जौनपुर प्रतापगढ़ की सीमा पर बने क्वारन्टाइन सेन्टर राजा हरपाल सिंह इंटर कॉलेज पहुचे जहॉ हमें ट्रक से उतार कर बोला गया कि सुबह बस द्वारा आप लोगों को आप के गन्तब्य तक पहुँचाया जाएगा। पर हमें ऐसी कोई आस न दिखी तब हम लोग पैदल ही निकल पड़े। बस किसी तरह घर पहुंच जाएं फिर शहर न बाबा ना। हम गॉव में मजदूरी कर परिवार का भरणपोषण कर लेंगें।
यह वास्तविकता है कि एक ही समस्या जब सफर पर निकलती है तो वह गरीब लाचार के पास ज्यादा दिन रूकना पसंद करती है और पैसे वालों को शायद दूर से ही नमस्ते कर देती है। कुछ ऐसा ही सह रहे हैं ये बेबस प्रवासी मजदूर।