12/13 अगस्त 2024 की रात्रि को आकाश में दिखाई देंगे टूटते हुए तारे शूटिंग स्टार्स
अगर आप अंतरिक्ष में रुचि रखते हैं तो इस बार 12/13 अगस्त 2024 को होने वाला शूटिंग स्टार्स का समागम बेहद ख़ास नज़ारा आपके लिए भी होने वाला है कुछ और भी ख़ास, आख़िर ऐसा क्या होने वाला है उस रात, आईए हम आपको विस्तार से जानकारी देते हैं ।
क्या होते हैं टूटते हुए तारे –
पुराने समय में लोगों की मान्यताएं थीं कि इस आकाश में प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक तारा है जब उन्हें कोई “टूटता हुआ तारा” ( शूटिंग स्टार) दिखाई देता था तो उन्हें लगता था कि कोई व्यक्ति जरूर ही इस लोक से उस लोक की अनन्त कालीन महा यात्रा पर निकला है, लेकिन धीरे धीरे कुछ हद तक अंध विश्वास दूर होता गया और आज़ हम लोग जानते हैं कि वह टूटते हुए तारे वास्तविक तारे नहीं होते हैं, बल्कि वह वास्तव में उल्काएं होती हैं , जो रात्रि में कुछ देर के लिए चमक उठती हैं और अति सुंदर भी नज़र आती हैं। पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री झुकी हुई है और पृथ्वी अपने अक्ष पर सतत घूमते हुए सूर्य का चक्कर भी लगाती है, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमने के कारण ही हमें दिन और रात का अनुभव होता है, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमने को घूर्णन ( रोटेशन) कहा जाता है, और पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने को परिभ्रमण ( रिवोल्यूशन) कहा जाता है, पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में लगने वाले समय को हम बर्ष कहते हैं, जब पृथ्वी अपने वार्षिक परिभ्रमणीय यात्रा के दौरान सूर्य का चक्कर लगाते हुए किसी धूमकेतु द्वारा जोकि लंबी दीर्घब्रत्ताकर कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते रहते हैं उनसे निकले हुए कण उनकी कक्षाओं में चक्कर लगाते रहते हैं उनके द्वारा छोड़े गए मलबे से गुजरती है तो उसी दौरान छोटे, बड़े आकार के ये टुकड़े जो कि कंकड़ पत्थर, जलवाष्प, गैसों ,धूल कणों आदि के बने हुए होते हैं , ये अंतरिक्षीय मलबे के टुकड़े जब पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल होने पर गुरूत्वाकर्षण बल और वायुमंडलीय घर्षण के कारण क्षण भर के लिए चमक लिए जल उठते हैं और रात्रि के आकाश में चमकते हुए दिखाई देते हैं और फिर कुछ समय में ही गायब हो जाते हैं , उसे ही खगोल विज्ञान की भाषा में उल्का और सामान्य भाषा में टूटता हुआ तारा ( शूटिंग स्टार) कहा जाता है जिनकी गति लगभग 70 किलोमीटर प्रति सेकंड से भी अधिक हो सकती है, इसी वजह से अधिकांश उल्काएं 130 से 180 किलोमीटर की ऊंचाई पर जलकर राख हो जाती हैं, यही आकाश में टूटते हुए तारों का आभास कराते हैं, जिन्हें ही आम बोलचाल की भाषा में टूटते हुए तारे भी कहा जाता है, जबकि बास्तब में ये टूटते हुए तारे नहीं होते हैं, इन्हें ही खगोल विज्ञान की भाषा में उल्काएं कहा जाता है, जो कि वैसे तो छिटपुट तौर से तो वर्षभर होता रहता है लेकिन ये कुछ ख़ास महीनों में ज्यादा नज़र आती हैं,
कब दिखाई देंगी उल्काएं –
वैसे तो लगभग रात्रि आठ बजे के बाद से ही यह नज़ारा दिखना शुरू हो जाएगा लेकिन 12 तारीख की मध्य रात्रि से 13 तारीख की भोर तक यह उल्का ब्रष्टि का नज़ारा बेहद ही खूबसूरत नज़र आएगा, अगस्त माह में होने बाली उल्का ब्रष्टि को परसीड्स उल्का ब्रष्टि कहा जाता है, क्योंकि यह उल्काएं पर्सियस तारामंडल से आती हुई दिखाई देती हैं, उल्काएं जिस तारामंडल के बिंदु की तरफ़ से आती हुई दिखाई देती हैं उसे खगोल विज्ञान की भाषा में मीटियर रेडिएंट प्वाइंट ( उल्का बिकीर्णक बिंदु) कहा जाता है , मगर यह ध्यान में रखना ज़रूरी है कि किसी तारामंडल के एक बिंदु से उल्काओँ के बिकीर्णन का यह नज़ारा सिर्फ़ एक दृष्टि भ्रम है, वास्तव में तारे हमसे बहुत दूर हैं, लेकिन उल्काएं करीब 100 से 120 किलोमीटर ऊपर ही बायुमंडल में पहुंचने पर उद्दीप्त हो जाती हैं, उल्का ब्रष्टि किसी न किसी धूमकेतु से ही संबन्धित होती हैं, अगस्त माह की पर्सिड्स उल्का ब्रष्टि का सम्बंध भी धूमकेतु स्विफ्ट टटल या 109पी/स्विफ्ट टटल नामक धूमकेतू से है,
कितनी उल्काएं दिखेंगी इस बार- इस बार अगस्त 12/13 की रात्रि को आप एक घण्टे में कम से कम लगभग 60 से लेकर 100 उल्काएं तक देख सकते हैं, जबकि इनका दिखना मौसमी घटनाओं पर भी निर्भर करता है,
कब से कब तक होता है यह अनोखा नज़ारा _ प्रत्येक वर्ष लगभग 17 जुलाई से शुरू होकर 24 अगस्त तक चलती है पर्सिडस मीटियोर शॉवर, लेकिन इस बर्ष अगस्त माह में 12/13 तारीख की रात्रि के दौरान यह उल्का ब्रष्टि अपने चरम सीमा पर दिखाई देंगी, जिस से इन उल्काओं की ब्रष्टि को और भी अच्छे से देखा जा सकता है,
आकाश में किस तरफ़ से आती हुई दिखाई देंगी उल्काएं _
वैसे तो आकाश में किसी भी दिशा से आती हुई दिख सकती हैं, लेकिन अगस्त माह में होने वाली उल्का ब्रष्टि को देखने के लिए आपको रात्रि के आकाश में पूर्वोत्तर दिशा की ओर से आती हुई दिखाई देंगी , और इनकी दृश्यता भी उच्च कोटि की होगी,
कैसे देखें _
आप रात्रि के आकाश का अनुसरण करें और इन्हें देखने के लिए बिना किसी ख़ास दूरबीन या बायनोक्यूलर्स या अन्य सहायक उपकरणों के भी यह नज़ारा भव्य दिखाई देगा, इसके लिए किसी भी प्रकार के खास उपकरणों की आवश्यकता नहीं पड़ेगी,आप सीधे तौर पर अपने घरों से ही किसी भी साफ़ स्वच्छ अंधेरे वाली जगह से सावधानी पूर्वक ही अपनी साधारण आंखों से ही इस नजारे का लुत्फ उठा सकते हैं, शहरी क्षेत्रों में अधिक प्रकाश प्रदूषण होने के कारण कुछ व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में निवास करने वाले लोगों को यह नज़ारा और भी मनोहारी दृश्य जैसा दिखाई देगा,
ध्यान रहे यदि अचानक से बादल, आंधी, बरसात , तूफ़ान आदि की स्थिति उत्पन्न होती हैं तो यह खूबसूरत नज़ारा दिखाई देना कठिन भी हो सकता है,
अमर पाल सिंह खगोलविद,
वीर बहादुर सिंह नक्षत्र शाला (तारामण्डल ) गोरखपुर,उत्तर प्रदेश, भारत