अर्द्घनारीश्वर स्वरूप में छिपा है सृष्टि का रहस्य
आज सावन के तीसरे सोमवार को होगी अर्द्धनारीश्वर शिव की पूजा
भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की अर्द्घनारीश्वर तस्वीर आपने जरूर देखी होगी। शिव पार्वती के अन्य स्वरूपों से यह स्वरूप बहुत ही खास
निर्वाण टाइम्स संवाददाता
लखनऊ।सावन माह चल रहा है, इसे भगवान शिव का अतिप्रिय मास माना जाता है। आज सावन का तीसरा सोमवार है, इस दिन अर्द्धनारीश्वर शिव का पूजन किया जाता है।
इन्हें खुश करने के लिए ‘ऊं महादेवाय सर्व कार्य सिद्धि देहि-देहि कामेश्वराय नम: मंत्र का 11 माला जाप करना श्रेष्ठ माना गया है। इनकी विशेष पूजन से अखंड सौभाग्य, पूर्ण आयु, संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा, कन्या विवाह, अकाल मृत्यु निवारण व आकस्मिक धन की प्राप्ति होती है।
दरअसल लिंग को शिव जी का निराकार रूप माना जाता है। जबकि शिव मूर्ति को उनका साकार रूप। केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। इस रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं।
भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की अर्द्घनारीश्वर तस्वीर आपने जरूर देखी होगी। शिव पार्वती के अन्य स्वरूपों से यह स्वरूप बहुत ही खास है। इस स्वरूप में संसार के विकास की कहानी छुपी है। शिव पुराण, नारद पुराण सहित दूसरे अन्य पुराण भी कहते हैं कि अगर शिव और माता पार्वती इस स्वरूप को धारण नहीं करते तो सृष्टि आज भी विरान रहती।
अर्द्घनारीश्वर स्वरूप के विषय में जो कथा पुराणों में दी गयी है, उसके अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का कार्य समाप्त किया तब उन्होंने देखा कि जैसी सृष्टि उन्होंने बनायी उसमें विकास की गति नहीं है। जितने पशु-पक्षी, मनुष्य और कीट-पतंग की रचना उन्होंने की है उनकी संख्या में वृद्घि नहीं हो रही है। इसे देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हुए। अपनी चिंता लिये ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने ब्रह्मा से कहा कि आप शिव जी की आराधना करें वही कोई उपाय बताएंगे और आपकी चिंता का निदान करेंगे।
ब्रह्मा जी ने शिव जी की तपस्या शुरू की इससे शिव जी प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि की रचना का आदेश दिया। ब्रह्मा जी ने शिव जी से पूछा कि मैथुन सृष्टि कैसी होगी, कृपया यह भी बताएं। ब्रह्मा जी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए शिव जी ने अपने शरीर के आधे भाग को नारी रूप में प्रकट कर दिया।
इसके बाद नर और नारी भाग अलग हो गये। ब्रह्मा जी नारी को प्रकट करने में असमर्थ थे इसलिए ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर शिवा यानी शिव के नारी स्वरूप ने अपने रूप से एक अन्य नारी की रचना की और ब्रह्मा जी को सौंप दिया। इसके बाद अर्द्घनारीश्वर स्वरूप एक होकर पुनः पूर्ण शिव के रूप में प्रकट हो गया। इसके बाद मैथुनी सृष्टि से संसार का विकास तेजी से होने लगा। शिव के नारी स्वरूप ने कालांतर में हिमालय की पुत्री पार्वती रूप में जन्म लेकर शिव से मिलन किया।
सावन के महीने में भगवान शिव का पूजन अक्षय पुण्य देने वाला है। शिवलिंग का विभिन्न द्रव्यों से पूजन कर मनवांछित इच्छाओं की पूर्ति की जा सकती है। श्रीलिंग महापुराण के अनुसार भगवान शिव का मूर्ति पूजन करना भी बहुत शुभ फलदाई होता है। इससे आप को बहुत सारे लाभ मिलते हैं। भगवान शिव की अपार कृपा आप के जीवन को खुशहाल बना देगी।
इसके बाद सावन के चौथे सोमवार को तंत्रेश्वर शिव की आराधना की जाएगी। चौथी सोमवारी को तंत्रेश्वर शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन कुश के आसन पर बैठकर ‘ऊं रुद्राय शत्रु संहाराय क्लीं कार्य सिद्धये महादेवाय फट् मंत्र का जाप 11 माला शिवभक्तों को करनी चाहिए। तंत्रेश्वर शिव की कृपा से समस्त बाधाओं का नाश, अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग से मुक्ति व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
वहीं पांचवें सोमवार शिव स्वरूप भोले की पूजा होगी। इसके तहत पांचवीं सोमवार को श्री त्रयम्बकेश्वर की पूजा की जाती है। वैसे साधन को जो सावन में किसी कारण कोई सोमवारी नहीं कर पाते हैं उन्हें पांचवी सोमवारी करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसमें रुद्राभिषेक, लघु रुद्री, मृत्युंजय या लघु मृत्युंजय का जाप करना चाहिए।
ये है पूजन विधि
गंजा जल,दूध,शहद,घी,शर्करा व पंचामृत से बाबा भोले का अभिषेक कर वस्त्र,यज्ञो पवित्र, श्वेत और रक्त चंदन भस्म,श्वेत मदार, कनेर, बेला, गुलाब पुष्प, बिल्वपत्र, धतुरा, बेल फल, भांग आदि चढ़ायें।उसके बाद घी का दीप उत्तर दिशा में जलाएं।पूजा करने के बाद आरती कर क्षमार्चन करें।