एक ग़ज़ल जो बड़ी मशहूर हुई थी अपने समय मे “कि मेरा कसूर क्या है पपीहे से पूछिए/की मेरा कसूर क्या है पपीहे से पूछिए”

शायद जिंदगी की इस भूल भुलैया में हमने भी कुछ पाया व कुछ खोया/पाया क्या पता नही पर खोने की गारंटी उस रात मिली

जिम्मेदारियों को निभाते हुए जब खुद से एक रात मिला तो एक यह प्रश्न आया मन मे मेरे

शीर्षक/मेरा कसूर क्या ?

सबका हक़ मुझपे पर मेरा हक़ किस पर है माँ-?

सबका अधिकार मुझपे पर मेरा अधिकार आज किस पर हैं माँ-?

बचपन के गुजरे दिनों की याद आज भी जब ताजी होती तो अक्स से आंसू छलक से जाते।जब याद आते वह बचपन के साथी तो मन को विभोर करती वो रातें।

खुशी के सभी पल गुजारे हुए अब इतने याद क्यो आते है माँ–

कभी तेरी बातें वो किस्से कहानी क्यो आज लगने लगी हैं पुरानी-2

“लोग कहते है कि व्यस्त रहो मस्त रहो”…

पर अगर व्यस्तता होती जीवन की कहानी तो फिर क्यो याद आती हैं वह अधुरी जवानी…

कही तो कमी तुझमें में भी होगी (जिंदगी)

कही तो कमी तुझमें भी होगी..—2

वर्ना न याद आती वो बचपन वो जवानी।

कहा कैद हु आज ख़ुद को हु भुला
कहा कैद हु आज खुद को हु भुला –2

और आज वह गजल याद आ जाता हैं मुझे जगजीत सिंह जी का

“वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी”

वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।

लेखक/पत्रकार् विनय तिवारी