
वनरक्षक का तबादला के चार माह बाद भी अपनी नई पदस्थापना स्थान पर नही किया प्रभार ग्रहण!
लखीमपुर-खीरी(एस.पी.तिवारी/रवि पाण्डेय) प्रदेश सरकार ने सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और कामकाज में पारदर्शिता लाने के मकसद से तबादला नीति बनाई।
इस नीति में तमाम विभागों में अधिकारी,कर्मचारी इधर-उधर हो गए।इससे वन विभाग अछूता नहीं रहा।विडंबना यह है कि वन विभाग में वनकर्मी अपना क्षेत्र छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं हैं। इसमें सम्बंधित आला अधिकारी उनका साथ देखते दिखाई दे रहे हैं।ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, इससे पहले अखिलेश सरकार में स्थानांतरण नीति में कई अधिकारी, कर्मचारियों का तबादला हुआ था उनके द्वारा भी तबादला नीति की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गयी थी।उस दौरान भी स्थानांतरित अधिकारी, कर्मचारियों में अपना कार्यक्षेत्र नहीं छोड़ा था।
यदि सरकार के तबादला आदेश के बाद भी कोई अधिकारी कोर्ट से स्टेट नहीं लिया है तब भी वह अपने पद पर जमा है इसका सीधा सा मतलब यही होता है कि उसने अपने विभाग के उच्च अधिकारियों से सेटिंग गेटिंग कर ली है।इसी वजह से वह विभाग से रिलीव नहीं हो रहा है दूसरा यह होता है कि वह रिलीव तो हो गया लेकिन तबादला के बाद तय जगह पर उसने ज्वाइनिंग नहीं ली।
उत्तर प्रदेश के कई वन अधिकारी-कर्मचारी तबादला होने के बाद चले जाते हैं किन्तु कुछ कर्मचारी तबादला होने के बाद भी अपने स्थान पर अंगद की तरह जमे हुए हैं।
सूत्रों के मिली जानकारी अनुसार अधिकांश अधिकारियों ने शासन का आदेश नहीं माना और वे अपने स्थान पर पूर्व की तरह ही पदस्थ हैं।
मिली जानकारी के मुताबिक वनरक्षक बृजेश शुक्ला का स्थानांतरण 22 दिसम्बर 2021 को दक्षिण निघासन रेंज से धौरहरा वनरेंज में सम्बद्ध किया गया था।
वनरक्षक का तबादला के चार माह बाद भी अपनी नई पदस्थापना स्थान पर प्रभार ग्रहण नहीं किया है।
किन्तु स्थानांतरण के चार माह के बाद भी पूर्व स्थान पर जमे हुए हैं शासन के आदेशों का मखौल उड़ाते हुए संबधित स्थानांतरित वनरक्षक भार मुक्त नहीं हो रहे हैं जिससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि अफसरशाही का बोलबाला इतना ज्यादा है कि शासन के आदेश की धज्जियां उड़ाई जा रही है।
मिली जानकारी के मुताबिक वनरक्षक बृजेश शुक्ला का ट्रांसफर हुए चार माह के ऊपर हो गया है उन्हें भी भारमुक्त नहीं करना अधिकारियों की मनमर्जी का जीता जागता उदाहरण है।वन विभाग के बड़े अधिकारी भी मौन हैं।