सरकारी डॉक्टरों को लगी पैसे की भूख, अधिकांश सरकारी डॉक्टर कर रहे हैं प्राइवेट प्रैक्टिस

चिकित्सा सेवा बना व्यापार का जरिया

गोरखपुर। जैसे-जैसे चिकित्सा विभाग से सेवा भाव खत्म होता जा रहा है वैसे वैसे चिकित्सा को एक व्यापार बना लिया गया | आज जितने भी डॉक्टर हैं वह चिकित्सा को सेवा भाव की जगह एक व्यापार के रूप में देखते हैं प्राइवेट प्रैक्टिस का धंधा अपने चरम स्थान पर पहुंच चुका है |
खासकर बीआरडी मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल के डॉक्टर इसमें अधिक से अधिक मात्रा में सम्मिलित हैं।

चिकित्सा सेवा को व्यापार बनाने वाले डॉक्टरो की संपत्ति की जांच होनी चाहिए

डॉ शपथ पत्र देते हैं कि वे प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं करते हैं जबकि वे एनपीए का लाभ लेते हैं सब कुछ हर कोई जानता है 90 से 95% से अधिक डॉ प्राइवेट प्रैक्टिस में लिप्त पाए जाते हैं ज्यादातर डॉक्टरों की खुद की क्लीनिक और नर्सिंग होम भी मौजूद है | मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल के डॉक्टर ड्यूटी पर कम ध्यान देते हैं और प्राइवेट प्रैक्टिस पर अधिक ज्यादातर डॉक्टर ओपीडी में आने वाले मरीजों को गुमराह कर नर्सिंग होम या अपनी क्लीनिक का रास्ता दिखाते हैं कई तो ऐसे डॉक्टर हैं जिनकी ओपीडी में कब मरीज देते हैं लेकिन जब वह अपने हॉस्पिटल पहुंचते हैं तो मरीजों की लाइन लगी रहती है |

समाधान कैसे

शासन प्रशासन को इस मामले को संज्ञान में लेते हुए ऐसे डॉक्टरों को चिन्हित किया जाए और उनकी संपत्ति की जांच कराई जाए जिससे इन डॉक्टरों के मन में दहशत पैदा हो सके ऑल इंडिया मानवाधिकार संगठन मैं इस परिपेक्ष में महामहिम राष्ट्रपति माननीय प्रधानमंत्री माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश माननीय स्वास्थ्य मंत्री उत्तर प्रदेश प्रमुख सचिव मेडिकल एजुकेशन उत्तर प्रदेश महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा उत्तर प्रदेश मंडलायुक्त गोरखपुर जिला अधिकारी गोरखपुर और प्रधानाचार्य बीआरडी मेडिकल कॉलेज अवगत कराया है कि गोरखपुर में ही शासन की मंशा के विपरीत सरकारी डॉक्टरों के द्वारा धन उगाही का कार्य जोरों शोरों से जारी है और इसमें शासन को दखलअंदाजी देने की जरूरत है जिससे चिकित्सा सेवा बना रहे ना कि धन उगाही का साजन बने |