blog
अर्थव्यवस्था को स्थिरता का संदेश

निर्वाण पाण्डेय (संपादक)
भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी हालिया मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो रेट को 5.5% पर स्थिर रखने का निर्णय लिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब वैश्विक और घरेलू दोनों मोर्चों पर अर्थव्यवस्था को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अस्थिरता, कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की धीमी रफ्तार जैसे कारक भारतीय मौद्रिक नीति के लिए सावधानी का संकेत दे रहे थे। ऐसे परिदृश्य में, RBI का यह निर्णय स्थिरता और सतर्कता दोनों का प्रतीक माना जा सकता है।रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक अल्पकालिक ऋण के लिए आरबीआई से पैसा उधार लेते हैं। इसकी स्थिरता का मतलब है कि बाजार में ब्याज दरें फिलहाल स्थिर रहेंगी, जिससे ऋण सस्ता होगा और निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। बीते कुछ महीनों में खुदरा महंगाई नियंत्रित दायरे में रही है, हालांकि खाद्य वस्तुओं और ईंधन की कीमतों में उतार-चढ़ाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। ऐसे में, आरबीआई ने दरें घटाने का जोखिम नहीं उठाया और दरें बढ़ाने की आवश्यकता भी नहीं समझी। यह नीति विकास और मुद्रास्फीति नियंत्रण के बीच संतुलन साधने की कोशिश है।
इस निर्णय का असर सीधे आम उपभोक्ताओं और उद्योग जगत पर दिखाई देगा। गृह ऋण, वाहन ऋण और शिक्षा ऋण लेने वालों के लिए यह राहत की खबर है, क्योंकि फिलहाल ब्याज दरों में वृद्धि की संभावना कम है। उद्योग जगत के लिए भी यह निर्णय अनुकूल है। वित्तपोषण लागत स्थिर रहने से निवेश योजनाओं को बढ़ावा मिलेगा, उत्पादन क्षमता में विस्तार हो सकेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ सकते हैं। छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए यह वातावरण विशेष रूप से लाभकारी होगा क्योंकि उन्हें सस्ते और स्थिर ऋण मिलने की संभावना बढ़ेगी।
हालांकि, यह नीति निर्णय पूरी तरह निश्चिंतता का आधार नहीं है। वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां अब भी अनिश्चित हैं। कच्चे तेल की कीमतें यदि अचानक बढ़ जाती हैं तो घरेलू महंगाई पर सीधा असर पड़ेगा। इसी तरह, अमेरिकी और यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं की स्थिति भारतीय निर्यात और विदेशी निवेश पर असर डाल सकती है। इसके अलावा, मानसून और कृषि उत्पादन भी महंगाई और मांग के स्तर को प्रभावित करेंगे। इन परिस्थितियों को देखते हुए आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि वह मौद्रिक नीति में लचीलापन बनाए रखेगा और जरूरत पड़ने पर बदलाव करने में संकोच नहीं करेगा।संक्षेप में, रेपो रेट को 5.5% पर स्थिर रखना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भरोसे और राहत का संदेश है। यह निर्णय बताता है कि केंद्रीय बैंक फिलहाल विकास की गति बनाए रखने, निवेश को प्रोत्साहित करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने की संतुलित नीति पर चल रहा है। आने वाले महीनों में वैश्विक और घरेलू आर्थिक संकेतक यदि अनुकूल रहते हैं, तो यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में अहम भूमिका निभाएगा। वहीं, किसी भी वैश्विक झटके की स्थिति में आरबीआई के पास अपनी नीति बदलने का विकल्प हमेशा खुला रहेगा।