Gorakhpur
90 के दशक और आज के समय में बंदी गृह के जीवन शैली में आया सकारात्मक बदलाव
90 के दशक में अपराधियों और सफेद पोश नेताओं/मंत्रियों के लिए बंदी गृह किसी फार्म हाउस नहीं होता था कम ,

विगत वर्षों में गोरखपुर जिला कारागार(बंदी गृह) की बदली तस्वीर

गोरखपुर(विनय तिवारी)। वैसे तो बंदी गृह का नाम सुनते ही पहले दिमाग में एक नकारात्मक छवि सामने आती थी जेल में बंद अपराधी एवं उनके कृत्यों को सुनकर और दिमाग में उसी नुसार बन जाती थी एक छवि जेल में बंदियों के प्रति ।90 के दशक में हमेशा देखने सुनने को आता था कि जब कोई बड़ा अपराधी पुलिस द्वारा पकड़ा जाता था एवं कोर्ट में उसकी सजा सुनाई जाती थी तो उनको बड़ी जेलों में शिफ्ट किया जाता था ,और जैसे फिल्मों में दिखाया जाता था कि जेल में निरुद्ध अपराधी कैसे काम करते है, लड़की का काम, पत्थर तोड़ना, गाड़ियों के भरकर कूदे करकट बाहर भेजना, और कही दो दबंग अपराधियों में भिड़ंत हो जाती थी तो बैठकी पर तय की जाती थी सुविधाएं। गोरखपुर जेल 90 के दशक में बंदी गृह अपराधियों दोनों के अलग अलग बैरकों में कालकोठरी में बंद करना जिसमें केवल अंधेरा के सिवा और कोई उसका साथी नहीं होता था।मंत्री साहब किसी कांड में जेल गए तो जेल जैसे लगता था जेल नहीं उनका फॉर्म हाउस है। नेताजी के रहने सोने, बैठने खाने पीने से लेकर उनके बैठकी तक की व्यवस्था ऐसी होती थी, जैसे नेताजी जेल में होकर अपने घर में पार्टी की मीटिंग कर रहे हो। फिलहाल समय बदला अधिकारियों का आना जाना लगा रहा ,पर इसमें कुछ ऐसे अधिकारी भी आए जिन्होंने बंदी गृह में कैदियों के सुधार ,अनुशासन पर भी लगातार कम किया। पर उस समय की सत्ता की हनक कही जाए या अपराधियों का जेल में रहकर भी बाहरी क्षेत्र में अपनी पकड़ जिससे या तो अधिकारियों को बदलना पड़ता या तो हो जाता था उनका ट्रांसफर।
कैसे हुआ बंदी गृह का सकारात्मक बदलाव क्या रही जेलर अरूण कुशवाहा एवं टीम की भूमिका –
जुलाई 2022 में जेलर अरूण कुशवाहा ने जब ज्वाइन किया तो बंदी गृह की व्यवस्था के बदलाव में उन्होंने पहले कृषि के क्षेत्र में बदलाव करना शुरू किया जिससे खान पान की व्यवस्था साफ सुथरी हुई। साथ ही शिक्षा क्षेत्र में तकनीकी कोर्स ,फैशन डिजाइनिंग,कम्प्यूटर ,सिलाई , खेल कूद में भी कैदियों को ऑनलाइन गेम में नेशनल लेवल तक लाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही। जिसके विजेताओं को राजभवन के प्रांगण में लगातार टीम तीन वर्षों से प्रथम पुरस्कार तक पहुंचने में सफल रही।वही सकारात्मक सोच के जरिए कैदियों में भी अपने जिले को अव्वल लाने के लिए पूरी मेहनत ,लगन ,ताकत झोंक दी जिसका प्रमाण है उनका राजभवन में सम्मानित होना एवं आज बंदी गृह से छुटे हुए कैदियों में 24 कैदी प्राइवेट जॉब कर रहे।
धार्मिक उत्सवों में मिल जुलकर एक दूसरे के त्योहारों में साथ देते बंदी
वही धार्मिक उत्सवों में हिंदू मुस्लिम के त्योहार जिला कारागार गृह में आज बड़े ही भव्यता से मनाया जाता होली,दीपावली,छठ, रक्षा बंधन , नवरात्र में जहां बंदी गृह में कैदियों द्वारा सभी त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाए जाते तो ईद,बकरीद, रमजान में भी शासन प्रशासन द्वारा कैदियों के लिए पर्याप्त व्यवस्था कराई गई।विगत तीन वर्षों में जिला कारागार की तस्वीर बदलने में जेल अधीक्षक एवं जेलर अरुण कुशवाहा और उनकी टीम का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके नेतृत्व में जिला कारागार में कई सकारात्मक बदलाव आए हैं।
जिला कारागार में बदलाव सुधारात्मक गतिविधियाँ
जिला कारागार में सुधारात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इन गतिविधियों का उद्देश्य कैदियों को समाज में पुनः एकीकृत करने और उन्हें अपराध से दूर रखने में मदद करना है।
“सुरक्षा और निगरानी”,जिला कारागार में सुरक्षा और निगरानी को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसमें सीसीटीवी कैमरे लगाना और सुरक्षा कर्मियों की संख्या बढ़ाना शामिल है।
जेलर अरुण कुशवाहा की भूमिका
नेतृत्व जेलर अरुण कुशवाहा ने जिला कारागार में सकारात्मक बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके नेतृत्व में जिला कारागार में कई सुधारात्मक गतिविधियाँ शुरू की गई हैं। जिसमें जेलर अरुण कुशवाहा ने जिला कारागार के भविष्य को ध्यान में रखते हुए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। इन निर्णयों का उद्देश्य जिला कारागार को एक आदर्श सुधार गृह बनाना है जिनमें बंदियों द्वारा सब्जियां जिसमें कद्दू ,लौकी,भिंडी, पत्ता गोभी, फूलगोभी, तोरई,आलू,प्याज उगाना साथ ही ऑनलाइन खेल में जिले को प्रथम स्थान लाने से लेकर जेल से छुटे बंदियों का टाइपिस्ट के साथ प्राइवेट नौकरियों में जाना, जेल रेडियो की स्थापना करना, टेराकोटा से बनी मूर्तियों को सराह जाना ये बदलाव आज गोरखपुर जिला कारागार की छवि को उसके सकारात्मक कार्यों द्वारा देखा एवं जाना जाता है। जो कि शासन प्रशासन द्वारा समय समय पर मिलने वाली सुविधाओं से बंदी गृह की छवि को सुधारने में काफी कारगर साबित हुई।

पिछले दो दशक में क्या आया परिवर्तन : जेल अधीक्षक दिलीप कुमार पांडेय
जेल अधीक्षक दिलीप कुमार पांडेय से यह पूछे जाने पर पिछले दो दशक में जेल में आपके अनुसार क्या परिवर्तन देखने को मिला तो उन्होंने कहा कि उस दशक में कैदियों के लिए भोजन लकड़ियों पर बनती थी और आज गैस चूल्हे पर हजारों कैदियों का भोजन साफ सफाई से बन रहा। आज हर बैरक में पंखे की सुविधा है ,कैदियों के मनोरंजन के लिए आज जेल में स्मार्ट टीवी,ओपन जेल की व्यवस्था,लाइब्रेरी की व्यवस्था साक्षर होने में बंदियों को अब प्राथमिक शिक्षा के साथ हाई स्कूल, इंटर, इग्नू द्वारा स्नातक, परास्नातक परीक्षा देने की व्यवस्था की गई। साथ ही राजर्षि टंडन विश्वविद्यालय में बंदियों उच्च शिक्षा की व्यवस्था भी आज की है है जिससे आज जेल से छुटे बंदी आज प्राइवेट सेक्टरों में काम करते हुए अपना जीवन अच्छे तरीके से व्यतीत कर रहे।
वही जेल अधीक्षक ने बताया कि पूर्वी पश्चिमी बंदियों के भोजन बनाने में विविधता लाई गई ।