सनातन धर्म का वांग्मय स्वरूप है श्रीमद् भागवत पुराण- मनोज शास्त्री

नाहरपुर/गोरखपुर। श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस में श्री बद्रीनाथ धाम से आए हुए व्यास जी श्री मनोज शास्त्री जी महाराज कथा श्रवण करवाते हुए समस्त श्रोताओं से कहा श्रीमद् भागवत सनातन का स्वरूप है। इस कलिकाल में भगवान कृष्ण की शब्द मय मूर्ति के रूप में धरती पर विराजमान है श्रीमद् भागवत सतयुग त्रेता द्वापर मैं भगवान को पाना बड़ा कठिन था लेकिन कलयुग में भगवान केवल नाम का आश्रय लेकर किस जीव को प्राप्त हो जाते हैं प्रहलाद जी ने भगवान नारायण का नाम लेकर एक खंभे में अपनी निष्ठा बनाई और भगवान खंभ को फाड़ करके नरसिंह रूप में प्रकट हो गए जहां भक्तों का प्रेम बढ़ता है प्रेम रूपी भक्ति बढ़ती है तो भगवान वहीं प्रकट हो जाते हैं गीता में भगवान की प्रतिज्ञा है जब मनुष्य सारे धर्मों का त्याग करके मुझे परमात्मा की शरणागति को स्वीकार करता है तो मैं जीव के सारे पाप ताप संताप नष्ट कर देता हूं और जीवात्मा को मोक्ष प्रदान करता हूं इसलिए प्रत्येक प्राणी को भगवान का नाम आश्रय लेकर के इस भवसागर से पार होने का उपाय करते रहना चाहिए संसार के सुख साधन शरीर के होते हैं पर आत्मा के सच्चे मित्र केवल और केवल हमारे परमात्मा हैं और उस परमात्मा को केवल मानव जैसे ही प्राप्त किया जा सकता है नाहरपुर की धरती पर ज्ञान भक्ति वैराग्य से युक्त त्रिवेणी की सरिता का प्रभाव करते हैं चतुर्थ दिवस में भगवान श्री कृष्ण की अवतार का प्रसंग श्रवण करवाते हुए व्यास जी ने कहा किस जीव के बंधन को खोलने के लिए सज्जनों की रक्षा पापा चार अत्याचार का विनाश करने के लिए भगवान धरती पर प्रकट होते हैं और धर्म की स्थापना करके पुनः अपने लोग को चले जाते हैं पर वास्तविकता यह है भगवान आते और जाते नहीं है भगवान तो हमेशा थे हैं और रहेंगे समस्त भक्तों को पूज्य व्यास जी ने भागवत जी के मधुर मधुर चरित्रों का श्रवण कराते हुए आनंद विभोर किया इस अवसर पर पंच कुंडीय लक्ष्मी नारायण महायज्ञ मैं पूज्य आचार्य श्री जगमोहन मिश्र ऋषिकेश वालों ने वैदिक मंत्रों से यजमान परिवार से एवं समस्त ग्राम वासियों के सुख-समृद्धि के लिए यज्ञ में आहुतियां अर्पित करवाई इस अवसर पर पंडित वेद प्रकाश शर्मा पंडित गीताराम जी मनोज जी शंभू जी गोविंद जी विनीत हिमांशु पंडित कृष्णानंद आदि विद्वान आचार्य ने भी वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए यज्ञ को संपन्न करवाया।