“बगावत” से इसौली का रहा है पुराना “नाता”,’बगावत’ से “इसौली” की सपा में पहला शो ‘फ्लॉप’

दूसरे शो के “नेता” पर संगठन का विश्वाश

जिला संगठन का विधायक से खत्म हुआ भरोसा,अभी से माना “बागी”

दो बार पार्टी का “बगावत” से हुआ है भारी नुकसान

शीर्ष नेतृत्व को समय पर लगाना पड़ेगा अंकुश

 

लोकसभा चुनाव में किस्मत अजमा चुके नेता पर लगाया “दांव” दी नई जिम्मेदारी

 

सुलतानपुर(निसार अहमद)। इसौली की सपा में विधायक की “बगावत” से पहला शो “फ्लॉप” रहा। दूसरे शो के लिए जिम्मेदारी लोकसभा चुनाव में किस्मत आजमा चुके नेता को दी गई है। जिला संगठन का भरोसा अब इसौली के विधायक से खत्म हो चुका है। अब इसौली में लोकसभा चुनाव के होने वाले कार्यक्रम की कमान शकील अहमद को सौंप कर आग में घी डालने का काम जिला संगठन ने कर दिया है। गुरुवार को होने कार्यक्रम की जो सूची जारी की गई प्रत्याशी से बड़ा कद आयोजक का दिखाया गया है। फिलहाल यह सपा का अंदरूनी मामला है। पर इतना जरूर है कि इसौली का बगावत से पुराना नाता रहा है, बगावत का खमियाजा दो बार पार्टी को उठाना पड़ा। यदि इसौली की चल रही बगावत पर समय रहते सपा सुप्रीमो अंकुश नही लगाते हैं तो नुकसान पार्टी को ही उठाना पड़ेगा?
बतातें चलें कि सपा में लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी प्रत्याशी चयन को लेकर जिले में “महाभारत” चल रहा। शुरुआती दौर से छिड़ जंग रुकने का नाम नही ले रही है। पहले तो जिले के कद्दावर नेता चुनाव लड़ने से हाथ खड़े कर दिए। प्रत्याशी चयन का निर्णय शीर्ष नेतृत्व पर छोड़ दिया। जब हाई कमान के सामने पंचायत हुई और पार्टी ने प्रत्याशी चयन के नाम की घोषणा कर दी। तब सबके सब नेताओं ने जिताकर लाने की हामी भरी।
एक हफ्ते तक सब कुछ ठीक चला। चुनाव की शमा बंधी। भाजपा का मूल वोट निषाद सपा के तरफ आकर्षित होने लगा।पर, इसी बीच एक-एक कर सारे पूर्व विधायक प्रत्याशी भीम निषाद के विरोध में लाम बंद हो गए। शिकायत सपा सुप्रीमो से हुई। जिला अध्यक्ष समेत पूर्व विधायक अपनी मंशा में सफल हो गए। एक महीने के अंदर ही टिकट भीम निषाद का कट गया। इस दौरान भीम को भारी समर्थन मिला। विधायक इसौली साथ रहे। अब नए परिवर्तन में पूर्व मंत्री राम भुआल को प्रत्याशी बनाया गया है, सारे पूर्व विधायक प्रत्याशी के साथ कंधा लगा कर चल रहे हैं। लेकिन इसौली विधायक मो. ताहिर खान पार्टी प्रत्याशी राम भुआल से दूरी बना के चल रहे हैं। विधायक की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि पहला प्रत्याशी जमीनी स्तर पर बहुत मजबूत है, गरीब उम्मीदवार की मजबूती पूर्व विधायको को “रास” नही आई,इसलिये टिकट कटवा दिया गया। अब जब तक सपा सुप्रीमो के पास महा पंचायत नही हो जाती? तब तक प्रत्याशी के समर्थन में इसौली में कार्यक्रम होना संभव नही है। इसौली विधायक के साथ स्थानीय संगठन भी साथ हवा को तूल दे रहा है। 23 अप्रैल के इसौली के सारे कार्यक्रम विधायक के बागी तेवर के चलते निरस्त कर दिए गए। जिसका संदेश इसौली की जनता के बीच गलत गया कि पार्टी प्रत्याशी के साथ जब विधानसभा क्षेत्र का विधायक ही नही साथ है तो …. मिलेगी। अब लगता है कि जिला संगठन भी दो दो हाथ करने के मूड में आ गया है। इसौली विधायक से भरोसा खत्म हो गया है। इसलिए अब जिला संगठन ने इसौली के चुनाव की कमान पूर्व में लोकसभा के चुनाव में किस्मत अजमा चुके नेता शकील अहमद को दी गई है। 25 अप्रैल को शकील अहमद के नेतृत्व में करीब 47 कार्यक्रम तूफानी लगाए गए हैं। इससे इसौली में कितना “डैमेज” कंट्रोल होगा या तो भविष्य के गर्भ में है?पर, इससे तो लगता है कि इसौली के अंदर पार्टी में तगड़ी बगावत चल रही है। समय रहते यदि चल रहे इस बगावत पर अंकुश न लगा तो आने समय मे नुकसान पार्टी का ही होगा? ऐसा दो बार यहां के नेता से शुरू हुए बगावती तेवर से पार्टी का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। जिसकी भर पाई तत्समय नही हो पाई थी। हालांकि इसौली का बगावत से पुराना नाता है, पूर्व में बगावत का खमियाजा विधानसभा में पार्टी को हार से चुकाना पड़ा था,2019 के लोक सभा चुनाव में भी तत्कालीन विधायक के बगावती तेवर से गठबंधन का प्रत्याशी जीतते-रह गया था। पार्टी को भी समझना चाहिए कि वर्तमान विधायक जनता में पकड़ मजबूत रखता है। यदि इस चीज का ख्याल नही रखा गया तो पूर्व का इतिहास न दोहरा उठे? बता दें कि इसौली में सपा बहुत मजबूत है, थोड़ी सी चूक यदि हुई तो पार्टी का ‘मत’ ‘ढगमगा’ सकता है। फिलहाल पार्टी ने लोकसभा प्रभारी जिस नेता को बना कर भेजा बहुत ही अनुभवि है। छात्र जीवन से ही राजनीति का “ककहरा” पढ़े हैं, जिसका फायदा पार्टी को सुल्तानपुर में मिल सकता है