बदलाव की प्रयोगशाला में नहीं बदली सपा की तस्वीर!

एक दशक के अंदर सपा ने बदले कई जिलाध्यक्ष ,अब फिर से रघुवीर यादव लगाया दाव

सुलतानपुर(विनोद पाठक)। सपा के बदलाव की प्रयोगशाला में करीब एक दशक के बीच बने कई जिलाध्यक्ष फेल हुए। पार्टी मुखिया बदलाव करते रहे कि जिले में सपा की तस्वीर उभरकर ऊपर आए, लेकिन मुखिया की मंशा पर पानी ही फिरता गया। लोकसभा-विधानसभा चुनाव होते रहे, कार्यकारिणी भंग होती रही। जिलाध्यक्ष बदलते रहे। पर, नहीं बदल सकी पार्टी की तस्वीर। अब फिर से एक बार कई बार के जिलाध्यक्ष रहे रघुवीर यादव पर दाव लगाया है। जिलाध्यक्ष बदलकर पार्टी बदलाव की तस्वीर देखना चाहती है।

करीब एक दशक से समाजवादी पार्टी के मुखिया लोकसभा-विधानसभा के चुनाव में जिले में खराब प्रदर्शन पर जिलाध्यक्ष की कुर्सी में बदलाव किया। बदलाव कर शीर्ष नेतृत्व जिले सपा के बदलने की तस्वीर का सपना संजोए रहती थी। पर, शीर्ष नेतृत्व की मंशा पर प्रयास तो जिलाध्यक्षों ने बहुत किए, लेकिन सफल नहीं हुए। यही वजह रही कि एक दशक के बीच में पार्टी हाईकमान ने पांच बदलाव किए। समाजवादी प्रदेश में जब सत्तारूढ थी। सबकुछ अच्छा चल रहा था। संगठन और कार्यकर्ताओं के परख की बेला आई, तब खरे नहीं उतरे। अर्थात् 2014 के सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी कन्डीडेट तीसरे स्थान पर जा पहुंचा। लोकसभा चुनाव के बाद जिले के मुखिया की कुर्सी बदल दी गई। उस समय जिलाध्यक्ष रघुवीर यादव थे। इनके स्थान पर प्रो. रामसहाय यादव को जिलाध्यक्ष बनाया गया। 2017 का विधानसभा चुनाव प्रो. रामसहाय के नेतृत्व में जिले में लड़ा गया। पार्टी चार सीट गवां बैठी, केवल इसौली सीट पर ही पार्टी की जीत का पताका फहरा। यहां पर फिर पार्टी ने बदलाव किया। राम सहाय यादव को हटाकर जिले की कमान एक बार फिर रघुवीर यादव को सौंपी गई। 2019 का लोकसभा चुनाव गठबंधन में रघुवीर यादव के अगुवाई में लड़ा गया, लेकिन परिणाम एक दम विपरीत रहा, तो पार्टी मुखिया ने जिला कार्यकारिणी भंग कर दी। करीब 10 महीने तक जिलाध्यक्ष बनने के लिए होड़ लगी रही, नेतृत्व के सामने शक्ति प्रदर्शन होता रहा। शीर्ष नेृतत्व ने पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष पृृथ्वीपाल यादव पर भरोसा जताया। पृथ्वीपाल यादव जिलाध्यक्ष बने, चुनौतियां इनके सामने भी थी। कड़ी मेहनत के बावजूद भी 2022 का विधानसभा चुनाव में बेहतर परिणाम नहीं निकले। 2017 के तर्ज पर ही 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में इसौली सीट ही फिर पार्टी के खाते में आई, लेकिन मत प्रतिशत में भारी वृद्धि हुई, जो पार्टी को संजीवनी नहीं दे पाई। चढ़ी बाजार में खराब प्रदर्शन कर पार्टी नेतृत्व ने फिर कार्यकारिणी भंग कर दी। नए जिलाध्यक्ष के तलाशने की फिर से शुरूआत हुई। पार्टी मुखिया अखिलेश यादव अपने पुराने अनुभवी चेहरे पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री रघुवीर यादव को जिलाध्यक्ष बनाकर जिले की तस्वीर बदलने की कोशिश की है।

 

बदलाव में छिपी है परख और चुनौती

सपा शीर्ष नेतृत्व ने जिले में बदलाव कर दिया, जिलाध्यक्ष बदल गए। पार्टी के परिवर्तन में परख और चुनौती छिपी है। संकट के दौर में नए जिलाध्यक्ष के सामने कई चुनौतियां हैं। एक संगठन को मजबूत करने, दूसरी पार्टी को आगे ले जाने की। इससे सबसे बड़ी चुनौती नगर निकाय का चुनाव है। नगर पालिका परिषद् समेत चार नगर पंचायतें हैं। जिनमें चुनाव होने हैं। नगर पालिका, नगर पंचायत पर बदलाव की परख भी होनी है। शीर्ष नेतृत्व के इस अग्नि परीक्षा की दौर से हुए बदलाव की भी परीक्षा होनी है। जिस पर जिलाध्यक्ष को खरा उतरना है। कुर्सी बदलने और मिलने की ललक में जो उत्साह है, यदि बरकरार रहा तो गुल खिलना भी असंभव नहीं। इसी पर शीर्ष नेतृत्व समेत अन्य उच्च नेताओं की निगाहें टिकी है।

 

रघुवीर यादव के नाम के आगे कई ‘तमगे‘

पार्टी हाईकमान ने ऐसे ही पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री रघुवीर यादव पर विश्वास नही जताया है। इसके पीछे का भी राज है। सपा जिलाध्यक्ष रघुवीर यादव के नाम के आगे कई ‘तमगे‘ जुड़े हैं। नगर पालिका परिषद् पर भी इन्हीं के समय में सपा का झण्डा लहरा था। 2002 के विधानसभा चुनाव में भी चांदा और इसौली सीट सपा की झोली में गई थी। 2007 के विधानसभा चुनाव में सुलतानपुर और इसौली सीट सपा के खाते में आई थी। 2012 के हुए विधानसभा का चुनाव रघुवीर यादव के नेतृत्व में लड़ा गया। पांचों विधानसभा की सीटे सपा की झोली में आई, लेकिन वह दौर कुछ और था, जो जिलाध्यक्ष के साथ कंधाबद्ध होकर चले, मजबूती मिली, लेकिन अब वे चेहरे पार्टी में नहीं हैं।

 

सपा में अब तक छह के नाम रही जिला अध्यक्षी

अभी तक समाजवादी पार्टी में जब से पार्टी की स्थापना हुई है, छह जिलाध्यक्ष जिले को दिया है। जिसमें दो मुस्लिम, एक क्षत्रिय, तीन यादव बिरादरी के नेताओं के नाम शामिल हैं। जिसमे,रघुवीर,प्रो राम सहाय यादव औऱ पृथ्वीपाल यादव के नाम शामिल है। 4 नवम्बर 1992 को समाजवादी पार्टी की स्थापना हुई। सजपा के जिलाध्यक्ष रहे बरकत अली नवगठित सपा पार्टी के जिलाध्यक्ष बने। बरकत अली के विधायक बनने के बाद 1993 में कमरूजमा फौजी जिलाध्यक्ष बने। 1998 में पार्टी ने कमरूजमा के स्थान पर अविभाजित अमेठी-जगदीशपुर के मुन्ना सिंह को जिलाध्यक्ष बनाया। करीब डेढ़ वर्ष तक मुन्ना सिंह जिले की कमान संभाले। इसके बाद लगभग 1999 में पार्टी के महासचिव रहे रघुवीर यादव को पार्टी हाईकमान ने जिलाध्यक्ष बना दिया। बाद में 2003 में रघुवीर यादव को हटाकर प्रो. रामसहाय यादव पर पार्टी ने भरोसा जताया और जिलाध्यक्ष बनाया। पर,2004 लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी ने परिवर्तन किया। फिर रघुवीर यादव जिलाध्यक्ष बनें। इसके बाद चुनाव होते गए और बदलाव होता चला गया।