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वक्त ने वक्त के साथ हर वक्त कुछ न कुछ सिखाया मुझे.
पर जब वक्त पर हर वक्त- वक्त- वक्त पर अपनो की जरूरत पड़ी तो वक्त ने उस वक्त अपनो का शक्ल दिखाया हमें..
इस वक्त किससे शिकायत करु क्युकी हर वक्त ,वक्त ने ही गिरना व सम्भलना बताया हमें..
जब जब जरूरत पड़ी अपनो की तो इसी वक्त ने सही वक्त पर सबका अलग रूप दिखाया हमे.
आज महसूस हुआ कि वक्त के साथ चलने वाला भी सफल नही हुआ, क्युकी हर वक्त “अपनो ने ही असली छवि दिखाया हमे” ….
लौटूंगा जरूर पर सब्र अभी बाकी हैं ,जिस दिन ठान लिया उस वक्त -वक्त से मिलवाऊंगा तुम्हे…
अहसास उस दिन होगा वक्क्त का तुमको जब वक्क्त तुमसे दूर होगा
अहसास उस दिन होगा व्यक्त का तुमको जब व्यक्त तुमसे दूर होगा..
चाहकर भी कुछ न कहना ये तुम्हे मंजूर होगा–
चाहकर भी कुछ न कहना ये तुम्हे मंजूर होगा।
लेखक विनय तिवारी