टीबी डायट प्लान : क्या खाएं और क्या नहीं?

ट्यूबरक्युलॉसिस कहे या टीबी, इसको हिन्दी में तपेदिक या क्षय रोग कहते हैं, जो एक संक्रामक रोग होता है। पहले के जमाने में टीबी का रोग लाइलाज था, पर अब मेडिकल साइंस के विकास के कारण टीबी रोग का इलाज संभव हो चुका है। इसके लिए एक बात का ध्यान रखना सबसे ज्यादा जरूरी और अहम होता है कि टीबी का इलाज कभी भी आधा अधूरा छोड़ना नहीं चाहिए, इससे बीमारी फिर से वापस आ सकती है। इसलिए टीबी का इलाज करने के साथ-साथ टीबी डायट प्लान (TB Diet Plan) को भी अच्छी तरह से फॉलो करना चाहिए। टीबी डायट प्लान ठीक तरह से फॉलो करने से इस बीमारी को जल्द से जल्द मात देने में मदद मिल सकती है।

जैसा कि आप जानते हैं कि ट्यूबरक्युलॉसिस की बीमारी बहुत ही पुरानी है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलॉसिस मूल रूप से लंग्स को प्रभावित करता है, जो पल्मोनरी डिजीज का आम कारण होता है। हालांकि, टीबी मल्टी-सिस्टमिक डिजीज होता है। इस बीमारी से शरीर के कुछ अंग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, वह हैं गैस्ट्रोइंटेस्टिनल सिस्टेम (GI), रेस्पिरेटरी सिस्टेम, लिम्फोरिटिक्युलर सिस्टम, स्किन, सेंट्रल नर्वस सिस्टम, रिप्रोडक्टिव सिस्टम, मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम और लिवर। प्रमाणों के तथ्य से यह पता चलता है कि मानव में यह बीमारी हजारों सालों से चली आ रही है।

हालांकि कुछ वर्षों से टीकाकरण और दवाओं के माध्यम से टीबी को खत्म करने के लिए ग्लोबली प्रयास किए जा रहे हैं। साल 2000 में विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्ल्यूएचओ ने आंकड़ों के आधार पर यह अनुमान लगाया है कि प्रतिवर्ष इस बीमारी में 1.5% की गिरावट आ रही है। 2000 से 2015 तक के सर्वे के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ, 2016) ने उल्लेख किया है कि ग्लोबल टीबी डेथ रेट में 22% की गिरावट आई है। लेकिन दुख की बात यह है कि इतना करने के बाद भी, अभी भी विश्व में टीबी के कई मामलें नजर आते रहते हैं। अब भी भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, चीन, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका में टीबी के कारण लोगों की मृत्यु दर 60% तक पाई गई है (WHO, 2017)। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि तपेदिक के कारण एचआईवी से ग्रसित मरीज ज्यादा मरते हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि तपेदिक अभी भी पूरी तरह से भारत क्या विश्व से नहीं गया है, इससे सिर्फ मृत्यु की दर कम हुई है। तो चलिए विस्तार से जानते हैं कि टीबी का रोग है क्या? टीबी होने का कारण और लक्षण क्या होते हैं? टीबी का इलाज करने के साथ ही टीबी में परहेज क्या करना चाहिए या टीबी का डायट प्लान क्या होना चाहिए।

तपेदिक या टीबी (Tuberculosis) क्या है?
टीबी बहुत ही खतरनाक संक्रामक रोग है, जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है। संक्रमित मरीज जब छींकता या खांसता है, तो बैक्टीरिया वातावरण में फैलकर दूसरे को संक्रमित कर सकता है।

टीबी के लक्षण (Symptoms of TB)
कई बार टीबी के लक्षण शरीर में मौजूद होने के बावजूद समझ में नहीं आते। इस अवस्था को लेटेंट टीबी कहते हैं। इसे एक्टिव होने में कई साल लग जाते हैं, तब तक यह शरीर में निष्क्रिय अवस्था में मौजूद होते हैं। जब टीबी शरीर में एक्टिव होता है, तब सांस संबंधी बहुत सारी समस्याएं नजर में आती हैं, जिनमें सर्दी और खांसी विशेष रूप से सामने आती हैं। अगर खांसी तीन हफ्ते से ज्यादा हो और खांसने के साथ कफ में खून और सांस लेने में समस्या हो रही हो, तो यह टीबी के लक्षण हो सकते हैं। इसके अलावा कुछ और लक्षण होते हैं, जिनमें हैं-

थकान
बुखार
रात में बहुत पसीना आना
भूख नहीं लगना
वजन कम होना
आम तौर पर टीबी होने पर सबसे पहले फेफड़ों पर असर पड़ता है, लेकिन जैसे-जैसे बीमारी के लक्षण जटिल होते जाते हैं, यह किडनी (Kidney), ब्रेन, स्पाइन, बोन मैरो आदि को भी प्रभावित करती जाती है। टीबी जैसे-जैसे अंगों को प्रभावित करता जाता है, वैसे-वैसे उसके लक्षण भी बदलते जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर टीबी के कारण किडनी प्रभावित होती है तो पेशाब करने पर उससे खून भी निकल सकता है। अगर ऐसे लक्षण नजर आ रहे हैं, तो इलाज और टीबी डायट प्लान फॉलो करना जरूरी होती है।

और पढ़ें : क्या है टीबी स्किन टेस्ट (TB Skin Test)?

टीबी या ट्यूबरक्युलॉसिस होने का कारण (Cause of TB)
जैसा कि पहले ही बताया गया है कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलॉसिस बैक्टीरिया के कारण टीबी होता है। टीबी से संक्रमित मरीज छींकने, खांसने, बात करने आदि कारणों से दूसरे को प्रभावित कर सकता है। इसी तरह यह बीमारी संक्रामक रूप धारण करता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया की लगभग एक चौथाई आबादी को लेटेंट टीबी है। असल में यह लोगों में अव्यक्त रूप में मौजूद होता है, अगर व्यक्ति का इम्यून सिस्टम स्ट्रॉंग होता है। कहने का मतलब यह है कि लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता जब तक मजबूत होती है, इसके लक्षण साइलेंट रहते हैं। जैसे ही इम्युनिटी कमजोर हुई बैक्टिरीया एक्टिव हो जाते हैं और लक्षण उभरकर सामने आ जाते हैं। लेटेंट टीबी यानि नॉन एक्टिव बैक्टीरिया संक्रामक नहीं होते, लेकिन ये जैसे ही एक्टिव हो जाते हैं दूसरों को संक्रमित करने लगते हैं।

इसके अलावा जो लोग तंबाकू का सेवन करते हैं, या लंबे समय से ड्रग या अल्कोहल लेने के आदि होते हैं, उनको टीबी होने का पूरा खतरा होता है। जो लोग एचआईवी (HIV) के मरीज होते हैं, उनका भी इम्यून सिस्टम कमजोर होने के कारण टीबी से ग्रस्त हो सकता है। इसके अलावा जिन लोगों को टीबी होने का खतरा होता है, वह हैं-

टीबी डायट प्लान: टीबी का निदान (Diagnosis of TB)
टीबी का इलाज करने से पहले डॉक्टर तीन तरह का टेस्ट करने के लिए कहते हैं, जिनके नाम इस प्रकार से हैं-

स्किन टेस्ट (Skin test)

संक्रमण है कि नहीं इसका पता लगाने के लिए पीपीडी (purified protein derivative) स्किन टेस्ट किया जाता है।

ब्लड टेस्ट (Blood test)

डॉक्टर स्किन टेस्ट के आधार पर ब्लड टेस्ट करने के लिए भी कह सकते हैं।

एक्स रे (X-Ray)

इन दोनों टेस्ट के बाद डॉक्टर एक्स रे करने के लिए कह सकते हैं। एक्स रे करके यह देखा जाता है कि इंफेक्शन हुआ है कि नहीं।

टीबी का इलाज (Treatment for TB)
टीबी का इलाज थोड़े लंबे समय तक चलता है। यह लगभग छह से नौ महीने तक चलता है। लेकिन इलाज का पूरा कोर्स करने की सलाह दी जाती है, नहीं तो टीबी की बीमारी फिर से वापस आ सकती है। फिर से होने पर जो दवाएं पहले काम कर रही थी, वह काम नहीं कर पाती। फिर रोग को संभालना मुश्किल हो सकता है। भारत में डॉक्टर कुछ दवाओं का कॉम्बिनेशन देते हैं, वह इस प्रकार से हैं-

आइसोनियाजिड (Isoniazid)
एथेमब्युटोल (Ethambutol)
पायराजिनामाइड (Pyrazinamide)
रिफैम्पिन (Rifampin)
नोट- ऊपर दी गई जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। इसलिए किसी भी घरेलू उपचार, दवा या सप्लिमेंट का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर करें।

टीबी डायट प्लान (TB Diet Plan)
टीबी के इलाज के दौरान लिवर पर प्रभाव पड़ने का डर रहता है, इसलिए टीबी का डायट प्लान भी डॉक्टर से पूछ लेना चाहिए। टीबी डायट प्लान (TB Diet Plan) ठीक होगा, तभी दवा भी ठीक तरह से काम करेगी।

टीबी डायट प्लान : टीबी मरीजों के लिए बेस्ट फूड
टीबी के मरीज को संतुलित आहार देना चाहिए। टीबी डायट प्लान (TB Diet Plan) या ट्यूबरक्युलॉसिस में डायट के बारे में पुरानी मान्यता है कि जितना महंगा खाना खिलाएंगे, उतना ही मरीज जल्दी स्वस्थ होगा। लेकिन यह सच नहीं है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आहार में पौष्टकता भरपूर मात्रा में हो और वह संतुलित हो। टीबी के इलाज के दौरान भूख कम लगती है और मरीज खाना नहीं चाहता। इसलिए खाना हेल्दी होने के साथ स्वादिष्ट भी होना चाहिए। जैसे-जैसे शारीरिक स्थिति बेहतर होने लगती है, मरीज खुद नॉर्मल तरीके से खाना शुरू कर देता है।

चलिए, अब देखते हैं कि टीबी डायट प्लान (TB Diet Plan) में क्या-क्या शामिल होना चाहिए। समझने में सहुलियत हो, इसके लिए डायट प्लान को पांच भागों में बांट लेते हैं-

ताजी सब्जियां और फल
दूध और दूध से बनी चीजें
अंडा, मांस और मछली
अनाज और दाल
तेल, फैट और नट्स
अगर आप टीबी मरीज के डायट प्लान में सभी फूड ग्रूप से फूड्स को शामिल करेंगे, तो वह आहार संतुलित भी हो जाएगा और मरीज को पौष्टिकता भी सही मात्रा में मिल जाएगी। टीबी डायट प्लान में यह देखना चाहिए कि एनर्जी और प्रोटीन, डायट में ज्यादा से ज्यादा होना चाहिए। रोटी में घी या मक्खन लगा देने से मरीज थोड़ा ज्यादा खा सकता है। तेल और फैट्स एनर्जी के लिए होते हैं, इसलिए संतुलित मात्रा में इनका सेवन कराना चाहिए। मांस, मछली और दूध के सेवन से मरीज को जितने प्रोटीन की जरूरत होती है, उसको पूरा करने में मदद मिलती है। सब्जियों में पत्तेदार सब्जियां, विटामिन और मिनरल के जरूरत को पूरा करने में सहायता करती है।

टीबी डायट प्लान (TB Diet Plan) या ट्यूबरक्युलॉसिस में डायट में इन सब बातों का ध्यान रखना इसलिए जरूरी है कि इनके अभाव में मरीज कुपोषण (malnutrition) का शिकार हो सकता है, जिससे मरीज की शारीरिक स्थिति और भी खराब हो सकती है। इस कारण दवाएं रोग के लिए ठीक तरह से काम नहीं कर पाएंगी और शरीर इस बीमारी से लड़ नहीं पाएगा। टीबी के अधिकतर मरीजों का वजन बहुत कम हो जाता है क्योंकि वह ठीक तरह से खा-पी नहीं पाते। इसलिए डॉक्टर हमेशा मरीज के डायट प्लान पर नजर रखने के लिए कहते हैं। इसके अलावा मरीज को थोड़ी बहुत फिजिकल एक्टिविटी भी करनी चाहिए, जिससे कि भूख लगे और मरीज अच्छी तरह खा पाए।