अब पछताए का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत
कार्रवाई के ‘मूड’ में संगठन
सुल्तानपुर(विनोद पाठक)। “अब पछताए का होत है, जब चिड़िया चुग गई खेत”। यह कहावत भाजपा की इसौली में हुई हार पर सटीक बैठती हैं। जब जरूरत थी तो संगठन ‘कान’ में “तेल” डाले बैठा था। अब जब समय निकल गया तो संगठन भी “मुखर” हुआ है। मतगणना के समय जब पेच फंसा तो भाजपा संगठन कहां था? ढूंढे नहीं मिले। अब खुले मंच से बयां किया जा रहा है कि जिन नेताओं ने “भितरघात” किया है, उनके ऊपर कड़ा “एक्शन” लिया जाएगा। हालांकि इसौली विधानसभा क्षेत्र में जो भी चुनाव हुए, उसमें भीतर घातियों का “घुल्लू” करने का पुराना रिश्ता रहा है। पार्टी में काफी अर्से से चल रही भितरघात पर अंकुश लगाने की किसी ने हिम्मत नहीं जुटा पाई। नतीजतन हुए हर चुनाव का परिणाम विपरीत आता रहा। इसौली की उत्साह में रही जनता मायूसी है। पदाधिकारी, कार्यकर्ता भितरघात और पदाधिकारियों की उदासीनता पर खूब कोस रहे हैं कि “बतावा हे चौकीदार, के जिम्मेदार…. गौरतलब हो कि इसौली विधानसभा क्षेत्र में भाजपाइयों का पार्टी प्रत्याशी से बगावत और भितरघात करने का रिश्ता बहुत ही पुराना है। अगर भितरघात न होता तो काफी अर्से पहले इसौली में “कमल” खिल गया होता? लेकिन भाजपा अपने नेताओं के ‘चलन’ से ही इसौली विधानसभा क्षेत्र में “कमल” नहीं खिला पा रही है। इसकी शुरुआत 2017 से हुई। 2017 के हुए विधानसभा चुनाव में जिले के हिंदुत्व के प्रखर नेता ओमप्रकाश पांडेय “बजरंगी” को इसौली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा का टिकट मिला। “बजरंगी” को टिकट मिलते ही अंदर ही अंदर अधिकांश भाजपाइयों की पेट में ऐंठ शुरू हुई। चुनाव के अंतिम समय में टिकट फाइनल होने पर ओमप्रकाश पांडेय बजरंगी उसी में उलझे ही रह गए। मान मनौव्वल का दौर भी खुब चला। लेकिन भितरघात करने वाले अपनी “फितरत” से बाज नहीं आए। चुनाव भर भाजपा प्रत्याशी भाजपाइयों को ही मनाने में लगे रहे। विपक्षी कम भाजपा के ही अधिकांश नेता “बजरंगी” को लड़ाई से बाहर बताने में ही मशगूल रहे। बजरंगी और उनकी सेना ने जनता के जरिए कमल खिलाने का भरसक प्रयास किया। लेकिन भीतर घातियों के चलते इसौली में कमल नहीं खिल पाया। इतना जरूर था कि बहुत ही मामूली अंतर से चुनाव हार गए।
भाजपा हाईकमान यदि 2017 के हुए विधानसभा चुनाव के भितरघातियों के खिलाफ एक्शन लिया होता तो इस का सिलसिला यहीं पर रुक जाता। लेकिन न जिला संगठन न ही हाईकमान ने कार्रवाई की तोहमत उठाई तो नतीजा यह हुआ कि जिला पंचायत सदस्य पद के लिए हुए चुनाव में भितरघात भाजपा के अंदर जोरों पर पहुंच गया। अंदर ही अंदर कुड़वार विकासखंड के एक वार्ड में जिले की चर्चित एवं कद्दावर भाजपा महिला नेत्री दोबारा चुनाव मैदान में उतरी तो ढेर सारे भाजपाइयों को नागवार लगा। भाजपा नेत्री की चाल को रोकने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए गए। खुलकर कई भाजपाइयों ने ही बगावत की, भितरघात किया। चुनाव परिणाम जब आया तो कुछ ही अंतर से भाजपा नेत्री चुनाव हार गई। लेकिन भाजपा संगठन ने कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया। जिसका परिणाम रहा कि संपन्न हुए 2022 विधानसभा चुनाव में इसौली में फिर से भितरघात देखने को मिला। इसौली विधानसभा क्षेत्र में कुछ ने परदे के पीछे तो कुछ ने खुलकर भितरघात किया। जिसका सोशल मीडिया पर ऑडियो भी खूब वायरल हुआ। सफाई देने का दौर भी चला, लेकिन इसौली की जनता कुछ भी मानने को तैयार नहीं है। इसौली की जनता को लगता है कि भाजपा प्रत्याशी को कुछ “जयचंद” ने हराने का काम किया है। उन्हें किसी भी दशा में माफ इसौली की जनता नहीं करेगी? केवल समय का इंतजार है।
विधानसभा इसौली से टिकट लेने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त रही, लेकिन अंतिम समय में बाजी टिकट की ओम प्रकाश पांडेय बजरंगी ने मारी। भाजपा प्रत्याशी ओमप्रकाश पांडेय बजरंगी चुनाव जीतने के लिए जितने भी तरीके थे सारे तरीके अपनाए,जनता में शोहरत हासिल की। इसौली की जनता भाजपा प्रत्याशी के साथ चुनाव भर रही। उत्साहित जनता ने भाजपा प्रत्याशी को जिताने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इस बार पिछली चूक को जीत में जनता बदलनी चाहती थी,लेकिन जनता को यह तनिक भर पता नहीं चल पाया कि हमारे बीच चुनाव के दरमियान “जयचंद्र” भी टहल रहे हैं। जयचंदों ने ऐसा भितरघात किया कि भाजपा की मंशा पर पानी फिरने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी। भाजपा की मंशा थी कि इसौली हम क्यों नही जीत सकते। इसौली हमें जीतना है, इसलिए पूरी ताकत लगा दी गयी थी, पर जो कुछ हुआ वह जनता संगठन के सामने है। बताने की जरूरत नहीं है। इसे जिला संगठन और हाईकमान बखूबी सब कुछ समझ रहा है। इतना जरूर है कि इसौली में कमल खिलते खिलते रह गया। हार की “टीस” जनता को भी है और भाजपा शीर्ष नेतृत्व को भी। अब आगे आगे देखिए होता है क्या।
विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए मतगणना भी हो गई। चुनाव परिणाम भी आ गया। अब भाजपा की एक ही “टीस” रह गई कि इसौली जीत के हार गए। हार के कारणों की तलाश की जा रही है। तलाश भी सबके सामने है। अब मंच से भी बयां किया जा रहा है कि कुछ भितरघातियों के चलते इसौली में भाजपा चुनाव हार गई है। ऐसे जयचंदों के विरुद्ध विधान परिषद के चुनाव के बाद कड़ी कार्रवाई करने का मूड संगठन बना रहा है। लेकिन सवाल उठता है कि जब प्रत्याशी को संगठन और कद्दावर नेताओं के मदद की जरूरत थी तो उस समय कद्दावर नेता और संगठन कहां था? मतगणना में जब आंशिक पेच फंसा तो जिले का कोई भी नेता प्रत्याशी के दाहिने और बाएं नहीं खड़ा हुआ। कुछ के मोबाइल फोन बंद मिले तो कुछ नेताओं के मोबाइल खुले मिले। कुछ ने बयां किया कि मैं निमंत्रण में आया हूं? सवाल यह उठता है कि निमंत्रण जरूरी था कि मतगणना के अंतिम समय में प्रत्याशी के साथ खड़ा होना? इसे भाजपा को तय करना है। कार्रवाई होती है कि नहीं, यह तो भाजपा का जिला संगठन और शीर्ष नेतृत्व जाने। लेकिन इतना जरूर है कि यदि भितरघातियों के ऊपर कार्रवाई नहीं हुई तो निश्चित तौर पर कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरता ही जाएगा। कार्यकर्ताओं की मांग है कि ऐसे भितरघातियों को पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाया जाए।