Raibarelly

चकबंदी नायब सलोन द्वितीय के लिए (आईजीआरएस) जनसुनवाई पोर्टल बनी खिलौना,

चकबंदी नायब सलोन द्वितीय के लिए (आईजीआरएस) जनसुनवाई पोर्टल बनी खिलौना

रिपोर्ट= रायबरेली से शिव शंकर मिश्रा की

रायबरेली =सलोन क्षेत्र के अंतर्गत चकबंदी विभाग रायबरेली के कर्मचारी अपने भ्रष्टाचारी हथ कंडो से बाज नहीं आ रहे हैं। मामला रायबरेली जनपद के सलोन तहसील की ग्राम पंचायत कचनांंवा का है। जो कि चकबंदी समायोजित गांव है। कचनांंवा में चकबंदी का कार्य समापन की ओर है। आपत्तियों के निस्तारण का कार्य प्रगति पर है। गांव के भुक्तभोगी किसान अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर हैंं। कचनांंवा निवासी चंद्रिका मौर्य पुत्र अयोध्या प्रसाद मौर्य ने बताया कि उसने जिलाधिकारी महोदया को एक शिकायती पत्र देकर अपने चक संबंधी मामले में किए गए फ्रॉड में शामिल डीडीसी, एसओसी, सीओ तथा एसीओ ने पार्टी का साथ देकर अपने पद की गरिमा का दुरुपयोग किया। उन्होंने मुख्यमंत्री कार्यालय के शिकायत संदर्भ संख्या 15158190021326 के आदेश तथा हाईकोर्ट के नियम की धज्जियां उड़ाई। जिसकी तत्काल जांच करा कर दोषियों पर प्राथमिकी दर्ज किए जाने की मांग की थी। परंतु यह चंद्रिका का दुर्भाग्य कहा जाएगा कि उसकी शिकायत को समन्वित शिकायत निवारण प्रणाली उत्तर प्रदेश जनसुनवाई पोर्टल पर दर्ज कर दिया गया। मामले की जांच आरोपियों के पास पहुंच गई। आरोपियों की बल्ले बल्ले हो गई क्योंकि स्वयं की चोरी स्वयं जांचने को मिल गई। अब स्वयं को दोषी कोई साबित करता है क्या। सहायक चकबंदी अधिकारी ने जांच आख्या आईजीआरएस पोर्टल पर लगा दिया कि चन्द्रिका के पास भूमि ही नहीं है। जबकि शिकायत में यह कहीं नहीं लिखा गया कि उसके नाम जमीन है। उसने केवल इतनी ही मांग की थी। जो स्टांप पेपर अधिकार पत्र के लिए यूज़ किया गया है वह महाराष्ट्र में खरीदा गया है। गवाहों के हस्ताक्षर तथा मुहर महाराष्ट्र में होते हैं। उस फर्जी अधिकार पत्र की नोटरी रायबरेली में उसी तारीख में तस्दीक की जाती है। उसी अधिकार पत्र के भरोसे चंद सिक्कों की लालच में भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे विभाग के कर्मचारी एक फर्जी आपत्ति पर फैसला सुना देते हैं। फर्जी अधिकार पत्र का जिक्र सहायक चकबंदी अधिकारी ने अपनी जांच आख्या में कहीं नहीं किया। जबकि पूरा बवाल फर्जी अधिकार पत्र को लेकर ही है। सोचने वाली बात यह है कि चकबंदी विभाग के अधिकारी-कर्मचारी फर्जी अधिकार पत्र की जांच से इतना भागते क्यों हैं। फ्रॉड तो फ्रॉड ही रहेगा उसको स्वीकार करने में बुराई क्या है। फिलहाल चंद्रिका मौर्य का मामला डीडीसी की मेज पर है। अब डीडीसी महोदय चंद्रिका मौर्य के साथ न्याय करते हैं। या फिर पूर्व में किए गए फ्राड की अनदेखी करते हुए चंद्रिका की आपत्ति को खारिज कर देते हैं। यह तो आने वाला समय बताएगा।

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