पोल्ट्री व चारा उद्योग की सुस्ती से मक्का किसानों की लागत निकलना मुश्किल

>> मक्का उगाना किसानों के लिए रहा घाटे का सौदा, पिछले साल के मुकाबले आधे दाम में बिक रही मक्का
बिलग्राम हरदोई ( अनुराग गुप्ता ) ।। कोविड १९ का असर उद्योग धंधे पर तो पड़ा ही था साथ ही साथ उद्योग धंधों की सुस्ती के कारण अब इसका असर किसानों की उगने वाली मक्के की फसल पर भी पड़ने लगा है। क्योंकि इस साल मक्का उगाने वाले किसानों की लागत भी सीधी नहीं हो रही है। वजह साफ है जिस चीज की खपत ही कम हो जायेगी तो उसके दाम में वैसी ही कमी आ जायेगी। ऐसा ही इस वर्ष मक्का उगाने वाले किसानों के साथ हो रहा है। मक्के की खपत पशुचारा उद्योग पोल्ट्री उद्योग फीड इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा होता था जिससे किसानों को मक्के का वाजिब दाम मिल जाता था। पिछले वर्ष जहां मक्के का भाव 1600 से 2200 रुपये था वो इस वर्ष 1150 से 1200 सौ रुपये ही रह गया है। जिसमें किसानों को पिछले साल के मुकाबले इस साल भारी नुकसान हो रहा है। क्षेत्र के किसानों का कहना है कि पिछले वर्ष पशु चारा के लिये हरी हरी मक्का पेड़ समेत बिक जाया करती थी इस साल कोई पूछने भी नहीं आ रहा है। जो लोग खेतों में खड़ी फसल को नहीं बेचते वो अपनी मक्का तैयार कर पोल्ट्री फार्म वालों को बेच कर अच्छा मुनाफा कमा लेते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। पोल्ट्री उद्योग सुस्त है लोगों ने मुर्गा पालना कम कर दिया है क्योंकि पहले कोरोना की दहशत में लागत से सस्ता मुर्गा या अंडा बेचा जा रहा था। उसमे फार्मर्स को काफी चूना लगा और वो रोड पर आ गये अब जब मुर्ग़ा महंगा हुआ तब फार्मर्स के पास न तो चूजा खरीदने के पैसे हैं। और न ही दाना। इस लिए पोल्ट्री फार्मिंग कम हो गयी। जब फार्मिंग कम हुई तो मक्के की मांग और खपत भी सून्य हो गयी। यही कारण है कि 2200 रुपये में बिकने वाली मक्का अब 1100 से 1200 सौ में बिक रही है। क्षेत्र में पोल्ट्री उद्योग के बड़े कारोबारी मोमिन उर्फ बल्ला का कहना है कि अब दो तीन वर्ष मक्का के भाव में तेजी देखने को नहीं मिल सकती है। क्योंकि मक्के का वाजिब मुल्य मिलने के कारण बड़े व्यापारियों ने पहले ही मक्के को स्टोर कर लिया है। और अब पोल्ट्री उद्योग सुस्त होने से इसकी मांग भी कम हो गयी है जब तक पोल्ट्री उद्योग में तेजी नहीं आयेगी तब तक मक्के का वाजिब दाम मिलना मुश्किल है।