राष्ट्रीय स्वयंसेवक कार्यालय पर पूज्य गुरुदेव को पुष्पांजलि अर्पित की गई

औरैया( मनोजकुमार)। यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्यालय पर आरएसएस के पूज्य गुरुदेव की पुण्यतिथि पर जहां उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की गई वहीं विश्व पर्यावरण दिवस पर 101 तुलसी के पौधे भी वितरित किये गए। सभी लोगों से पौधों को लगाने के साथ उनके सरंक्षण पर भी ध्यान देने को कहा गया। विश्व पर्यावरण दिवस पर इस बात को लेकर खासी चिन्ता जाहिर की गई कि प्रकृति का दोहन अगर न रुका तो मानव जीवन के लिए खतरा उत्पन्न हो जाएगा इसलिए प्राकृतिक सन्तुलन को बनाये रखना होगा।
पूज्य गुरुदेव के पुण्यतिथि पर यहां संघ कार्यालय पर उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए उन्हें याद किया गया। इस अवसर पर पूज्य गुरुदेव के बारे में जानकारी देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ औरैया के जिला प्रचारक पीयूष कुमार ने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार जी ने अपने देहान्त से पूर्व जिनके समर्थ कन्धों पर संघ का भार सौंपा वह थे श्री माधवराव गोलवलकर, जिन्हें सब लोग प्रेम से श्री गुरुजी कहकर पुकारा करते हैं। उन्होंने बताया कि श्री माधव का जन्म 19 फरवरी, 1906 (विजया एकादशी) को नागपुर महाराष्ट्र में अपने मामा के घर हुआ था, उनके पिता श्री सदाशिव गोलवलकर उन दिनों नागपुर से 70 कि.मी. दूर रामटेक में अध्यापक थे, माधव बचपन से ही अत्यधिक मेधावी छात्र थे। उन्होंने सभी परीक्षाएँ सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं, कक्षा में हर प्रश्न का उत्तर वे सबसे पहले दे दिया करते थे। अतः उन पर यह प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि जब कोई अन्य छात्र उत्तर नहीं दे पायेगा, तब ही वह बोलेंगे अन्यथा नहीं। एक बार उनके पास की कक्षा में गणित के एक प्रश्न का उत्तर जब किसी छात्र और अध्यापक को भी नहीं सूझा, तब माधव को बुलाकर वह प्रश्न हल किया गया। जिला प्रचारक ने कहा कि वह अपने पाठ्यक्रम के अतिरिक्त
अन्य पुस्तकें भी खूब पढ़ते थे, उस समय नागपुर के क्रिश्चियन कॉलेज में प्रधानाचार्य श्री गार्डिनर बाइबिल पढ़ाते थे। एक बार माधव ने उन्हें ही गलत अध्याय का उद्धरण देने पर टोक दिया उसके बाद जब बाइबिल मँगाकर देखी गयी, तो माधव की बात ठीक थी। इसके अतिरिक्त हॉकी व टेनिस का खेल तथा सितार एवं
बाँसुरीवादन भी माधव के प्रिय विषय थे। उच्च शिक्षा के लिए काशी जाने पर उनका सम्पर्क संघ से हुआ। वे नियमित रूप से शाखा पर जाने लगे। जब डा. हेडगेवार काशी आये, तो उनसे वार्तालाप में माधव का संघ के प्रति विश्वास और दृढ़ हो गया। मास्टर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल करने के बाद वे शोधकार्य के लिए मद्रास गए लेकिन वहाँ का मौसम अनुकूल न होने के कारण वह काशी विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक बन गये। उनके मधुर व्यवहार तथा पढ़ाने की अद्भुत शैली के कारण सब उन्हें ‘गुरुजी’ कहने लगे और फिर तो यही नाम उनकी पहचान बन गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय जी भी उनसे बहुत प्रेम करते थे। कुछ समय काशी रहकर वे नागपुर आ गये और कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन दिनों उनका सम्पर्क रामकृष्ण मिशन से भी हुआ और वे एक दिन चुपचाप बंगाल के सारगाछी आश्रम चले गये। वहाँ उन्होंने विवेकानन्द के गुरुभाई स्वामी अखंडानन्द जी से दीक्षा ली, स्वामी जी के देहान्त के बाद वे नागपुर लौट आये तथा फिर पूरी शक्ति से संघ कार्य में लग गये। उनकी योग्यता देखकर डा0 हेडगेवार ने उन्हें 1939 में सरकार्यवाह का दायित्व सौंपा। अब पूरे देश में उनका प्रवास होने लगा, 21 जून, 1940 को डा. हेडगेवार के देहान्त के बाद श्री गुरुजी सरसंघचालक बने। उन्होंने संघ कार्य को गति देने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी।
1947 में देश आजाद हुआ पर उसे विभाजन का दंश भी झेलना पड़ा। 1948 में गांधी जी हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया और उसके बाद श्री गुरुजी को जेल में डाल दिया गया लेकिन उन्होंने धैर्य से सब समस्याओं को झेला और संघ तथा देश को सही दिशा दी। इस सबसे उनकी ख्याति हर तरफ फैल गयी तथा संघ-कार्य भी देश के हर जिले में पहुँच गया। श्री गुरुजी का धर्मग्रन्थों एवं हिन्दू दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था लेकिन उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार कर दिया। 1970 में वे कैंसर जैसी घातक बीमारी से पीड़ित हो गये। शल्य चिकित्सा से उन्हें कुछ लाभ तो हुआ पर पूरी तरह नहीं। इसके बाद भी वे प्रवास करते रहे पर शरीर का अपना कुछ धर्म होता है। उसे निभाते हुए श्री गुरुजी ने 5 जून, 1973 को रात्रि में नश्वर शरीर छोड़ दिया। इस अवसर पर जिला सह वौद्धिक प्रमुख जीवाराम, जिला सह सम्पर्क प्रमुख रामबाबू,नगर कार्यवाह सुनील कुमार, सह नगर कार्यवाह पंकज कुमार, नगर प्रचारक मोहित कुमार, नगर प्रचार प्रमुख आयुष, वीरेंद्र कुमार, अनुराग,ऋतिक, ध्रुव, गौरव,बलवीर एवं रज्जन सहित कई अन्य स्वयंसेवक भी उपस्थित रहे।