औरैया(अजीतसिंह)।मुस्लिम महिला अधिकार ऐक्टिविस्ट जो कि तीन तलाक़ ओर हलाल परम्परा के विरुद्ध संघर्ष कर रही है ।
अनुप्रिया जी ने अपनी बात रखते हुए कहा की किस प्रकार समाज में लैंगिक विषमता को शिक्षा ओर जागरूकता के द्वारा दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को खुद अपने आपको पहचानने व अपने विश्वास को सुदृढ़ करने की ज़रूरत है । अपनी ख़ुशी के लिए महिलाओं को पुरुषों की स्वीकार्यता का इंतेज़ार नहीं करना चाहिए।
निदा खान ने मुस्लिम महिलाओं की स्थिति पर बात की और बताया कि सामाजिक परिवेश किस प्रकार महिलाओं व लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने से रोकता है । इसके लिए उन्होंने भारतीय सिनेमॉ का उदाहरण दिया कि हीरो ओर हीरोईन को बराबर भुगतान नहीं किया जाता। निदा खान ने इस बात पर ज़ोर दिया कि शिक्षा ही एक मात्र ऐसा साधन है जो देश में महिलाओं की परिस्थितियों में सुधार ला सकता है।
डॉ बी पी अशोक जी ने बताया कि समाज ने कैसे औरत को गालियों, तानो और फबतियों के दायरे में बांधा है। महिलाओं के आत्मविश्वास को तोड़ने के लिए नए नए हथकंडे अपनाता है ।
कार्यक्रम संचालक डॉ जय श्री भारतीय साहित्य धार्मिक ग्रंथ आदि का उदाहरण देते हुए कहा कि प्राचीन काल से ही महिलाओं को सीमित रोल में रखा गया है। नारी को सिर्फ़ दो रूप दिए हैं या तो स्त्री पतिव्रता है या फिर कामिनी। हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी स्त्रियों को इन्ही रूपों में दिखाया गया है। नारी को नरक का द्वार तक कह दिया गया है ।
आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत में आज जो भी अधिकार महिलाओं के मिले है उनका पूरा श्रेय बाबा साहेब डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर जी को जाता है । जिन्होंने भारतीय सविधान में स्त्रियों को समानता का अधिकार दिया। सम्पति में हिस्सेदारी , प्रसूति अवकाश, कार्यस्थल पर विशेष सुविधा , आरक्षित सीटें, समान कार्य के लिए समान वेतन ,पुनः विवाह का अधिकार इत्यादि बाबा साहब की ही देन है और ये बात सभी को जाननी चाहिए ।
श्री मति प्रीति पाण्डेय जो की हेल्थ इंडस्ट्री से आती हैं और दिल्ली के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में शिक्षिका के रूप में काम कर रही है ने अपनी बात रखते हुए कहा कि महिलाओं को प्रत्येक क्षेत्र में आगे आना चाहिए । उन्होंने कहा कि यदि हम अपनी बच्चियों को ही दुनिया का सामना करना सिखाए तो वे बड़ी होकर खुद ही सशक्त बनेगी इससे एक मज़बूत समाज की स्थापना को बल मिलेगा।