भइया के “चाची” के खिलाफ चुनाव प्रचार न “बाबा” न
गठबंधन के एक घटक दल के कई नेताओं का मत
अपने हाथ से नही देना चाहते….को रफ्तार
सुलतानपुर(विनोद पाठक)। ‘भइया’ के ‘चाची, के खिलाफ लोकसभा में चुनाव प्रचार न ‘बाबा’ न। यह हाल सुलतानपुर में गठबंधन के एक घटक दल के अधिकाँश कद्दावर नेताओं का। सामने कुछ और। पीठ पीछे कुछ और का खेल चल चुका है। यानी राहुल गांधी की चाची मेनका गांधी के खिलाफ चुनाव प्रचार को यहां के एक घटक दल के ज्यादातर नेता तैयार नही हो रहे हैं। अपने हाथ से साइकिल को रफ्तार नही देना चाहते हैं। जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिल रहा है।
सुलतानपुर लोकसभा सीट से ग़ांधी परिवार के सदस्य को तीसरी बार भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा है। जिसमे 2014 में वरुण गांधी को यहाँ से उतारा तो विजय का पताका फहराया। 2019 में वरुण गांधी का टिकट काटकर उनकी माँ मेनका गांधी को प्रत्याशी बनाया तो भाजपा की विषम परिस्थिति को सफलता में मेनका गांधी ने परिवर्तित कर दिया। यानी दुबारा गांधी खानदान के सदस्य मेनका ने जीत का इतिहास रचा और सुल्तानपुर में रुके विकास के पहिए को ही नही घुमाया बल्कि जनता के बीच मे रहकर समस्या को सुना और निस्तारण भी कराया। जिसकी मुरीद जनता मेनका गांधी की हो गई।अब एक बार फिर से पार्टी ने मेनका गांधी को सुल्तानपुर से उम्मीदवार बनाकर गठबंधन समेत बसपा की चुनावी “चाल” को बांध रखा है। भाजपा अपने पक्ष में चुनाव का रंग गाढा कर बहुत आगे निकल गई है। गठबंधन का प्रत्याशी अपनों के “बगावती” तेवर के “मकड़जाल” में महीने भर उलझा रहा।जिसका लाभ समय रहते भाजपा उठाती रही। अब “सोने में सुहागा” का काम गठबंधन के एक घटक के अधिकांश कद्दावर नेता करने जा रहे हैं। भरोसे मंद सूत्र बताते हैं कि घटक दल का एक बड़ा धड़ा “भाइया” के “चाची” के खिलाफ चुनाव प्रचार करने से हाथ खड़ा करने जा रहा है। यानी अपने हाथ से साइकिल को रफ्तार नही देना चाह रहा है। वजह भी एकदम साफ है। सांसद मेनका गांधी के सामने गठबंधन के उम्मीदवार का कद बहुत छोटा होना। साथ ही एक माह तक चले उठापटक में चुनावी रंग आपस मे लड़कर फीका कर दिया है। जो बातें छनकर आ रही हैं,उससे तो लगता है कि अब… विपक्षी दलों की… निकल गई है। अब जब भाजपा के चुनावी “रथ” को हांकने के लिए घटक दल के ही अधिकांश साथी आतुर हो गए हैं तो भला बताइए कि भाजपा के जीत की “चाल” को कौन रोंक पाएगा?