न बैंड न बाजा आये “दुल्हे राजा”दिल के अरमा आंसुओ मे बह गये
सोनू पान्डेय/चमन सिंह राणा
निघासन-खीरी।’दिल के अरमा आंसुओं में बह गये’ यें चंद लाइने आज सहालको के मौसम में चरितार्थ हो रही है।कोरोना ने भी क्या सितम ढाया सहालक का मौसम ऐसे में इस भंयकर आपदा ने भी दस्तक दे दी।सादगी भरे महौल मे वर वधू बंध रहे है।दाम्पत्य जीवन की डोर में।जहां रात की चकाचौध में डी.जे के सुरो पर थिरकते बराती वही आज इस कोरोना ने सब पर रोक लगा दी है।जहां एक तरफ वर पक्ष सैकड़ो बराती बारात ले वधू पक्ष के घर जाता था सारी रश्में निभायी जाती थी आज कोरोना के चक्कर में सब रश्मे घरो के भीतर ही कैद होकर रह गयी है। शासन प्रशासन से बच कर शादियां हो रही है जिनमें केवल दुल्हा व बाप व सहबला जाकर चुपचाप दुल्हन विदा कर ले जा रहे है।लोग शासन प्रशासन की अनुमति के लिये सरकारी दफ्तरो के चक्कर लगा रहे है पर अनुमति के लिये कोई अनुमति नही है।
हर लडकी की एक हसरत होती है कि उसका दुल्हा बारात लेकर उसे विदा कराने आयेगा वह डोली में बैठकर अपने ससुराल जायेगी लेकिन इस कोरोना ने तो डोली तो दूर मोटर साइकिल भी नही नसीब हो रही है।बीस अप्रैल के बाद लॉक डाउन में ढील की खबर से लोग खुश थे लेकिन जिले की स्थिति असंतोषजनक होने की स्थिति में चौकसी और अधिक बढ़ा दी गयी।लोगों का मानना था कि वह कम से कम लोग जाकर दुल्हन को विदा करा ले आयेगे परंतु जिले की सीमायें लाक होने से शादियां टूट रही है या फिर आगे की डेटे बढ़ाई जा रही है।इन शादियो के चक्कर में कौन अपनी जान आफत में डाले क्योकि अधिक भीड़ होने की दशा में कार्यवाही होना तय है।