Uttar Pradesh

पत्रकारिता का गिरता स्तर समाज के लिए घातक

 

ज्ञानेन्द्र कुमार पाण्डेय

साथियों एक समय था जब एक पत्रकार की कलम में वो ताक़त हुआ करती थी।जसकी कलम से लिखा गया एक-एक शब्द राजनेताओं,व अधिकारियों की कुर्सी को हिलाकर रख देता था।जैसा कि आप सभी जानते है कि पत्रकारिता ने हमारे देश की आज़ादी में अहम् भूमिका निभाई।जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था।उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत के पाँव उखाड़ने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों को जागरूकता लाने के उद्देश्य से अपनी बातों को उन तक पहुचाने व अंग्रेजो की गतिविधियों को लोगो से रुबरू कराने के लिए उस वक्त समाचार पत्र व पत्रिकाओं की शुरूआत हुई थी।जिससे समाचार-पत्र पत्रिकाओं ने देश के लोगो को जोड़ने व एकजुट करने में एक अहम भूमिका निभाई थी।
आज के समय की पत्रकारिता व चौथे स्तम्भ को गिराने में जुटे तथा कथित पत्रकारो के लिए एक पत्रकार की कलम से निकले शब्द।
आज के डिजिटल युग मे जिस तरह से समाचार पत्र व पत्रिकाओं की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई हैं!तो उसी तेजी से पत्रकारों की बहुत भारी संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है।जिससे न केवल लोगो को नई जानकारी के साथ सरकार की जनता तक व जनता की सरकार तक बातों को पहुचाने में एक सेतु की भूमिका निभाई है वह बहुत ही सराहनीय है। लेकिन इस बीच कुछ ऐसे लोग भी पत्रकारिता से जुड़ गए है।जिनके कारण देश के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं!तथा कथित पत्रकारो की लम्बी कतारें लग गई है।आज के दौर में ऐसे पत्रकारों की भी लंबी चौंडी कतार लगी है। जिनका पत्रकारिता से दूर दूर तक भी कोई लेना देना नही कोई सम्बन्ध नही।सच कहें तो उनको पत्रकारिता का अर्थ तक नही पता।जो पत्रकार बने गली मोहल्लों घूमते नजर आ रहे हैं।जिस कारण दिन प्रति दिन पत्रकारिता की छवि धूमिल होती जा रही हैं।लोगों का भरोसा पत्रकारों पर से उठने या फिर कम होने लगा है।अब आये दिन समाचार पत्रों में खबरें छपती है।वह पत्रकार किसी को ब्लैकमेल कर रहा था उस थाने में उसके खिलाफ मामला दर्ज हुआ है।ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है।वहीँ आज कुछ तथाकथित पत्रकारों ने मीडिया को कमाई का साधन बना रखा है अपनी धाक जमाने व गाड़ी पर प्रेस लिखाने के अलावा इन्हें पत्रकारिता या किसी से कुछ लेना देना नहीं होता क्यूंकि उनके लिए सिर्फ प्रेस लिखना ही काफी है।गाड़ी पर नम्बर की ज़रूरत नहीं किसी कागज़ की ज़रूरत नहीं हेलमेट की ज़रूरत नहीं मानो सारे नियम व क़ानून इनके लिए शून्य हो क्यूंकि सभी इनसे डरते जो हैं चाहे नेता हो या अधिकारी हो कर्मचारी हो ,पुलिस हो,अस्पताल हो सभी जगह बस इनकी धाक ही धाक रहती है।इतना ही नहीं अवैध कारोबारियों व अन्य भ्रष्टाचारी अधिकारियों,कर्मचारियों आदि लोगों से धन उगाही कर व हफ्ता वसूल कर अपनी जेबों को भर कर ऐश-ओ-आराम की ज़िन्दगी जीना पसंद कर रहे हैं व खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं।और समाज के सामने भ्रष्टाचार को मिटाने का ढिंढोरा पीटते हैं मानो यही सच्चे पत्रकार हो सभी लोग इनके डर से आतंकित रहते हैं कुछ तथाकथित पत्रकार तो यहाँ तक हद करते हैं कि सच्चे,ईमानदार और अपने कार्य के लिए समर्पित रहने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को सुकून से उनका काम भी नहीं करने देते ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है।कुछ युवाओं ने तो पत्रकारिता को एक शौक़ समझ लिया है।जबकि पत्रकारिता एक ऐसा क्षेत्र है जिसे ना तो हर कोई कर सकता है और ना ही ये हर किसी के बूते की बात है। पत्रकारिता हर दौर में एक चुनौती रही है और आज भले ही मीडिया क्रांति का दौर हो लेकिन पत्रकारिता आज भी एक चुनौती है।यह बात बिल्कुल सत्य है कि एक पत्रकार और उसकी पत्रकारिता अपनी कठिन मेहनत से समाज में घटित हो रही घटना से हमें रूबरू करवाते है।माध्यम बेशक टेलीविजन पर दिखाई जाने वाली खबरें हो या अखबार में।
आज हद तो यह है कि आपराधिक मानसिकता के व्यक्ति अपने कारोबार को संरक्षण देने के लिए पत्रकारिता में प्रवेश कर रहे हैं जिससे भ्रष्टाचार,अन्याय,अत्याचार को बढ़ावा मिल रहा है और हमारा लोकतंत्र दिन-प्रतिदिन खोखला हो रहा है जो आज नहीं तो कल हमारे लिए घातक सिद्ध होगा। पत्रकारिता समाज का आईना होती है जो समाज की अच्छाई व बुराई को समाज के सामने लाती है अब यदि पत्रकार और बुराई के बीच में सेटिंग हो जाती है तो न अच्छाई समाज के सामने आयेगी और न ही बुराई।
एक दौर था जब पत्रकार अपनी कलम की लेखनी से समाजिक हित में बड़े आंदोलनों को जन्म दिया करता था। लेकिन आज स्थितियां लगातार बदल रही हैं।पत्रकारिता पर व्यवसायिकता हावी हो गई है। जिस कारण पत्रकारिता के स्तर में लगातार गिरावट आ रही है।एक ओर कुछ पत्रकार अपने निजी फायदे के लिए सोशल मीडिया पर फेक न्यूज भेजने का जो चलन बढ़ा है उसका सीधा असर समाज पर पड़ रहा है व समाज में पत्रकार की छवि धूमिल हो रही है।
वास्तव में सही पत्रकार समाज की कठिन समस्याओं पर भी अपनी लेखनी के माध्यम से सरकारों को चेताने की बात करते है ताकि मानव जीवन के लिए कठिन होती जा रही समस्याओं का समय रहते ही निराकरण हो सके।
देश के चौथे स्तम्भ को बचाने के लिए चिंतन जरूरी
इमारत को बनाने के लिए जिस प्रकार उसके ढांचे को खड़ा करने के लिए चार स्तंभों की जरूरत होती है।ठीक उसी तरह हमारे देश के लोकतंत्र रूपी इमारत में लगे न्यायपालिका,कार्यपालिका,विधायका को लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ माना है।जिनमें चौथे स्तम्भ के रूप में पत्रकार को शामिल किया गया है।किसी भी देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष पत्रकार उतना ही जरूरी व महत्वपूर्ण है जितना लोकतंत्र के अन्य स्तम्भ तीन स्तम्भ।पत्रकार समाज का चौथा स्तम्भ होता है जिसपर मीडिया का पूरा का पूरा ढांचा खड़ा है जोकि एक नीव का काम करता है। लेकिन अगर उसी स्तम्भ को भ्रष्टाचार व असत्य रूपी दीमक लग जाए तो मीडिया रूपी स्तम्भ को गिरने से बचाने व लोकतंत्र रूपी इमारत को गिरने से बचाने में बहुत बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।जोकि एक चिंता का विषय है।

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