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फर्जी पत्रकारों की आई बाढ़, पाच सौ से हजार में बिक रहे हैं कार्ड

 

शब्दो का नही है ज्ञान, गले में पट्टा टाँग बने हैं पत्रकार

देवरिया (ए.के. सिंह)। कोरोना काल की महामारी में मानो फर्जी पत्रकारों की बाढ़ सी आ गयी है। बिना किसी मानक के 500 से एक हजार ले कर धड़ल्ले से पत्रकार बनाये जा रहे है। इसके लिए शब्दो के ज्ञान की आवश्यकता नही है, भौकाल होना चाहिए। इससे जहां अधिकारी कर्मचारियोंं को दिक्कते हो रही है। वहींं ऐसे लोगो की वजह से निष्पक्ष पत्रकारिता धूमिल हो रही है। इसका आमजन में भी गलत संदेश जा रहा है।
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा आधार स्तम्भ का दर्जा दिया गया है। पत्रकारिता का उद्भव आमजन को जागरूक करने व उनके अधिकारों से उन्हें परिचित कराने के लिए हुआ। समाचार पत्र पर आज भी आमजन का अटूट विश्वास है। पत्रकार की लेखनी को आज भी लोग पत्थर की लकीर मानते है, पर जब शब्दो का ज्ञान ही न हो तो आखिर हम दूसरों को कैसे शिक्षित करेंगे। इसके लिए हमे पहले स्वयं को शिक्षित व प्रशिक्षित करना होगा। वर्तमान परिवेश में इसका उल्टा दिख रहा है। सड़को पर ,सरकारी कार्यालयों सहित अन्य जगहों पर प्रेस लिखी सैकड़ो गाड़िया दिखाई देंंगी। इनमे से कुछ को छोड़कर ज्यादेतर उन्ही की गाड़ियां है, जिन्हें पत्रकारिता के ठेकेदारों ने पाँच सौ से एक हजार में कार्ड बना कर दे दिया है, और वे यह कार्ड गले मे टाँग कर अधिकारियों व पुलिस कर्मियों पर धौस जमाते फिरते है। चाहे उन्हें शब्दो का ज्ञान हो या न हो पर भौकाल टाइट होता है। ऐसे लोगो की वजह से जहा पत्रकारिता की गरिमा धूमिल हो रही है, वहींं लोगो मे इसके प्रति विश्वास भी कम हो रहा है। जिसके चलते वास्तविक पत्रकारों की छवि भी दागदार हो रही है।

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